गीतिका/ग़ज़ल

गजल : दरख़्त व छाँव

FB_IMG_1458892627820दरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिन
महल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिन

काश रुक पाता नदी लिए पेड़ों की छैयां
तो झुरमुटों की छाँव बैठता एक दिन।।

शुद्ध पानी दीवारों से छान पिया बहुत
चुल्लूभर पीता सतही गन्दगी हटाके घिन।।

दोनें में भर लाता नदी का विषैला नीर
नीलकंठ को नहला देता फिर से एक दिन।।

अमराइयों से कहता ऊगा अब नई कोपलें
चिड़ियों को बिठाता बना घोंसला चुनचुन।।

राहगीरों को सहलाती पुरवाइयां पेड़ों की
मंजिलों को निहारता बजाकर मधुर बिन।।

त्योहारों से कहता पानी पेड़ का रिश्ता
होली में पानी पानी कर देता आज के दिन।।

सूखी होली मिलावटी मेवा की गुझिया
सराबोर कर देता तुझे तनिक मेरी भी सुन।।

लगा ले अपने आँगन में एक अदद् बिरवां
फिर देख मुंडेर अपने ता धिनक धिन धिन।।

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ