ग़ज़ल
तुम्हारे दर्द पे मेरा कलाम हो जाये ।
अब तेरे साथ भी किस्सा तमाम हो जाए ।।
इश्क मजबूर न करदे किसी तबाही को ।
तुम्हारे हुस्न को मेरा सलाम हो जाए ।।
जाम छलका है तेरी हर अदा से ऐ साकी ।
खुदा करे न के पीना हराम हो जाए ।।
बड़ी खामोश निगाहों से कत्ल करती हो ।
कत्लखाने में सनम एक शाम हो जाए ।।
बहुत आज़ाद मसीहा है वो आशिक तेरा ।
इक नज़र भर से वो तेरा गुलाम हो जाए ।।
खुदकशी कर न ले ऐ शम्मा परवाना तेरा ।
तेरी दहलीज पे कुछ इंतजाम हो जाये ।।
बेमुरव्वत की शक्ल में हैं चाहतें तेरी ।
ख्वाब तेरा न कहीं बेलगाम हो जाए ।।
इस रियासत को मुकद्दर से बचा रक्खा हूँ ।
तू बड़े नाज़ से मेरा निज़ाम हो जाए ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
अच्छी ग़ज़ल !