कविता

कविता : जीने का ढंग

क्यों छोड़ दें हम अपने जीने का अंदाज ।
क्या है हमारे पास इस अंदाज के सिवा।

क्यों छोड़ दें हम अपना निर्भयता का अहसास ।
क्या है हमारे पास इस निडरता के सिवा ।

क्यों छोड़ दें हम हर वक्त मुस्कुराना ।
क्या है हमारे पास इस मुस्कुराहट के सिवा ।

क्यों छोड़ दें हम जीना ये अल्हड़ सा जीवन ।
क्या है हमारे पास इस मस्ती के सिवा ।

“सरू” जीवन ये ही है जी लें हर पल को हम।
क्या है हमारे पास इस वक्त के सिवा।

स्वाति “सरू” जैसलमेरिया

स्वाति जैसलमेरिया

370 A/१ हरी निवास गांधी मैदान 3rd c road सरदारपुरा जोधपुर मो. 7568076940

One thought on “कविता : जीने का ढंग

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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