गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : अश्क

कुछ अश्क छिपा रखे थे
हमने अपने दामन में ।
हमारे अपनों ने उनको
महफिले आम कर दिया ।

जिन्दगी खूबसूरत थी हमारी भी
न गम का नाम भी था कोई
जो ये नजरें मिली तुझसे
दिल तेरे नाम कर दिया

रूतबा था हमारा भी कोई
इस जालिम जमाने में ।
हमारे दिल के टुकड़े ने
हमें बदनाम कर दिया ।

दुआ लगी नहीं हमको ।
जो तूने बद्दुआ भी दी
तिलिस्म का काम कर दिया ।

जो हम बैठे हैं महफिल में
फिर भी तन्हाई लगती है ।
तेरी यादों ने कुछ यू घेरा
सुबह को शाम कर दिया ।

तूने देखा नहीं पलटकर
हम भी थे तेरी राहो में ।
तेरी एक बेरूखी ने हमें
तुझपे कत्लेआम कर दिया

अनुपमा दीक्षित “मयंक”

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - [email protected]

One thought on “गीतिका : अश्क

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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