गीत : देशभक्ति
बिना रीढ़ की हड्डी के किसी आदमी जैसी होती है
कट्टरता के बिना देशभक्ति ही कैसी होती है
गंगा-जमनी तहजीबों के किस्से तुमने बना लिए
चौराहों पर जगह-जगह दीपक भी तुमने जला लिए
तुमको नेताओं ने स्वप्न दिखाए और तुम फूल गए
लेकिन सपना कभी नहीं होता अपना ये भूल गए
प्यार वही होता है जिसके बदले में भी प्यार मिले
हमने जब भी बाहें फैलाईं बदले में प्रहार मिले
हमको मिली है सीख कि दुश्मन से भी मीठी बात करें
उनको है ये छूट वो चाहे घात करें, प्रतिघात करें
वो सारी दुनिया को बमों से दहलाएँ तो चलता है
वो काश्मीर से हर पंडित को मार भगाएँ चलता है
वो कहते हैं गाय तुम्हारी माँ है जो उसे काटेंगे
वो कहते हैं पुनः देश को धर्म के नाम पे बांटेंगे
लेकिन हमको तो बस चूड़ी पहन के बैठे रहना है
मारे-पीटे कोई मगर आगे से कुछ नहीं कहना है
वो हमारी बेटियों को बेइज्जत सरे बाज़ार करें
लेकिन हमको तो आदेश है हर हालत में धीर धरें
उसकी बेसुरी तान भी तुम्हें कितनी सुरीली लगती है
और हम सच्ची बात कहें तो वो जहरीली लगती है
आप कह रहे हैं अगर कुछ किया बहुत पछताओगे
और मैं कहता हूँ जो कुछ ना किया तो मारे जाओगे
और मैं कहता हूँ जो कुछ ना किया तो मारे जाओगे
— भरत मल्होत्रा