गीत/नवगीत

गीत : देशभक्ति

बिना रीढ़ की हड्डी के किसी आदमी जैसी होती है
कट्टरता के बिना देशभक्ति ही कैसी होती है

गंगा-जमनी तहजीबों के किस्से तुमने बना लिए
चौराहों पर जगह-जगह दीपक भी तुमने जला लिए

तुमको नेताओं ने स्वप्न दिखाए और तुम फूल गए
लेकिन सपना कभी नहीं होता अपना ये भूल गए

प्यार वही होता है जिसके बदले में भी प्यार मिले
हमने जब भी बाहें फैलाईं बदले में प्रहार मिले

हमको मिली है सीख कि दुश्मन से भी मीठी बात करें
उनको है ये छूट वो चाहे घात करें, प्रतिघात करें

वो सारी दुनिया को बमों से दहलाएँ तो चलता है
वो काश्मीर से हर पंडित को मार भगाएँ चलता है

वो कहते हैं गाय तुम्हारी माँ है जो उसे काटेंगे
वो कहते हैं पुनः देश को धर्म के नाम पे बांटेंगे

लेकिन हमको तो बस चूड़ी पहन के बैठे रहना है
मारे-पीटे कोई मगर आगे से कुछ नहीं कहना है

वो हमारी बेटियों को बेइज्जत सरे बाज़ार करें
लेकिन हमको तो आदेश है हर हालत में धीर धरें

उसकी बेसुरी तान भी तुम्हें कितनी सुरीली लगती है
और हम सच्ची बात कहें तो वो जहरीली लगती है

आप कह रहे हैं अगर कुछ किया बहुत पछताओगे
और मैं कहता हूँ जो कुछ ना किया तो मारे जाओगे

और मैं कहता हूँ जो कुछ ना किया तो मारे जाओगे

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]