संस्मरण

मेरी कहानी 116

कुलवंत की बुआ की लड़की की शादी कैसे हुई , मुझ को और फुफड़ को कुछ नहीं पता क्योंकि सारी रात रास्ते में गुज़ारने के बाद हम इतना सोये कि बारह वजे जाग आई। घर के सभी सदस्य गुरदुआरे गए हुए थे ,सिर्फ दो बज़ुर्ग औरतें ही वहां थी ,पता नहीं घर की रखवाली के लिए या कुछ और वजह से। हम ने मुंह हाथ धोये और कुछ खाने के लिए देखने लगे। एक बज़ुर्ग औरत ने हमारे लिए चाह बना दी और एक थाली हमारे लिए टेबल पर रख दी ,जिस में कुछ लड्डू जलेबीआं और कुछ नमकीन था। मज़े से हम ने खाया और दो दो कप्प चाय के पिए ,कुछ तसल्ली हुई।

अब हमारे आगे सवाल रात वाला ही था कि हम ने वापस भी जाना था और गाड़ी का किया करें। हम घर से बाहर आ गए और चैटहैम टाऊन में घूमने लगे। फिर फुफड़ नें बर्मिंघम को टैलिफोन किया यहां से वैन हायर की थी ,फुफड़ ऊंची ऊंची बोल रहा था कि ऐसी वैन हम को क्यों दी थी ,जब कि उन को पता होना चाहिए था। काफी देर बहस करने के बाद हम टेलीफून बूथ से बाहर आ गए। फुफड़ ने बताया कि वोह बोल रहे थे कि हम किसी वोल्क्सवैगन गैरेज से गाड़ी को रिपेअर करा लें और पैसों की रिसीद ले लें ,बर्मिंघम आने पर वोह पैसे दे देंगे।

शनिवार का दिन था। बहुत गैरजें तो शनिवार को बंद ही होती थीं और वोल्क्सवैगन वालों की इस इलाके में एक ही गैरेज थी। लोगों से पूछते पूछते हम जिलीगाम पहुँच गए क्योंकि जिलीगाम में ही वोल्क्सवैगन की गैरेज खुली थी। जब हम वहां पहुंचे तो वहां दो ही मकैनिक थे जो गाडिओं पर काम कर रहे थे। हमें देखते ही एक गोरा जो शायद फोरमैन होगा ,हमारी तरफ आ गिया और हाऊ कैन आई हैल्प यू बोला। फुफड़ ने सारी बात डीटेल से उसे बिआन कर दी।

गोरा बोला कि हमें इंतज़ार करना पड़ेगा क्योंकि अभी रिपेअर करने वाली और गाड़ीआं थीं , उसके बाद ही वोह देखेंगे। फुफड़ मुझे बोला ,” क्यों ना जब तक हम घूम फिर लें “. तकरीबन दो घंटे हम जिलिगाम के स्टोरों में घुमते रहे क्योंकि वहां हीटिंग लगी हुई थी और बाहर ठण्ड थी क्योंकि सड़कों पर जम्मी हुई स्नो थी । फिर हम एक कैफे में चले गए ,चाय और सैंडविच लिए और खा कर हम बाहर आ गए।

अब काफी वक्त हो गिया था और हम गैरेज की तरफ चल पड़े। जब हम वहां पहुंचे तो हमारी गाड़ी रैम्प पर चढ़ी हुई थी और नीचे एक मकैनिक काम कर रहा था। दोनों पुलिआं उस ने निकाली हुई थीं। पता नहीं उस ने क्या किया होगा ,कुछ देर बाद उस ने दोनों पुलिआं और फैन बैल्ट चढ़ा दी। फिर रैम्प को नीचे ला दिया और गाड़ी को एक तरफ खड़ा कर दिया। फोरमैन हमारे पास आया और बिल दे दिया ,याद नहीं कितना था। इस के साथ ही उस ने गैरेज बंद कर दी और हम भी ख़ुशी ख़ुशी चल पड़े और घर के सामने आ कर गाड़ी खड़ी कर दी।

अब तक गुरदुआरे से सभी लोग आ गए थे और घर में रौनक थी। हम भी बैठ गए और हमारे मुंह से भी अब बातें निकलने लगी थीं। याद नहीं कितने वजे डोली की रसम खत्म हुई होगी लेकिन इतना याद है कि विदाई के बाद वातावरण कुछ ग़मगीन सा था। अँधेरा होने तक वक्त कैसे बीता ,याद नहीं लेकिन जब हम सो कर उठे तो सुबह का ब्रेक फ़ास्ट ले कर हम दोनों इस घर का गार्डन देखने लगे जो बहुत ही अजीब किसम का था क्योंकि यह तिरछा नीचे की और जाता था। यह सारा एरीआ ही पहाड़ी इलाके जैसा था। सड़क से तो घर के भीतर जाना साधाहरण ही लगता था लेकिन डाइनिंग रूम ,टॉयलेट ,बाथ रूम और कुछ बैड रूम बिलकुल नीचे थे और यहां आने के लिए लकड़ी की सीढ़ी लगी हुई थी। डाइनिंग रूम में तो अँधेरा ही लगता था और हमें एक घुटन सी महसूस हो रही थी। सर्दिओं के दिन होने के कारण गार्डन में तो कुछ नहीं था और लगता था गार्डनिंग का किसी को शौक भी नहीं था।

अब फुफड़ मुझे बोला ,”यार गुरमेल ,क्यों न एक दफा फिर गाड़ी को चैक कर लें ,पता नहीं साला डर सा लगता है ” .मैंने भी हाँ बोल दी और बाहर आ गए ,फुफड़ और मैं गाड़ी में बैठ गए और हम चल पड़े। यह सारा एरीआ बहुत ही अजीब सा था ,कभी हमारी गाड़ी ऊंचाई की ओर जाने लगती और कभी नीचे की ओर। कुछ ही दूर ऊंचाई की ओर बढ़ रहे थे कि फैन बैल्ट उत्तर गई। फुफड़ ने गोरे मकैनिक को गंदी गाली निकाल दी , उसका चेहरा गुस्से से सुर्ख हो गिया। मैं चुपचाप गाड़ी से उतरा , बौनेट खोला और उसी ढंग से बैल्ट चढ़ा दी और बोला ,” फुफड़ा चल “. हम घर को वापस आ गए और अब बातें हमारी गाड़ी की चल पड़ीं क्योंकि फ़िक्र तो सब को था कि वापस कैसे जाना था।

फिर कुलवंत का चैटहैम वाला फुफड़ मोहन सिंह बोला ,” मैं एक लड़के को टेलीफून करता हूँ “. उस ने टेलीफून घुमाया और कुछ बातें कीं। टेलीफून रख के फुफड़ बोला ,” मुंडा बैड में अभी सोया ही पड़ा था और अपसैट हो गिया ,एक घंटे तक आने को कहा है “. एक घंटे बाद वोह लड़का आ गिया। हम ने सारी कहानी उसको सुनाई। उस ने अपनी गाड़ी से टूल बॉक्स निकाला और हमारी गाड़ी का बौनेट खोल कर पुलिओं को धियान से देखने लगा। काफी देर वोह देखता रहा और फिर बोला ,” मुझे लगता है पुलिओं की अलाइनमेंट सही नहीं है ,एक पुलि का दुसरी से कुछ फरक है ,यह देखने में मालूम नहीं होता लेकिन है जरूर “. और वोह लड़का पुलिआं खोलने लगा।

इधर कुलवंत का यह फुफड़ उस लड़के की सिफ्तों के पुल बाँध रहा था ,” ओ जी ,यह लड़का तो बहुत कारीगर है ,इस ने कई कोर्स किये हुए हैं ,ओ जी यह लड़का तो इतना चंगा है कि जब टेलीफून करो हाजर हो जाता है”। मकैनिक लड़के ने कुछ ही मिंटो में पुलिआं खोल लीं और एक पुलि से एक वाशर निकाल दी और फिर अलाइनमेंट चैक की। उस को तसल्ली हो गई थी और बोला , ” लगता है अब गाड़ी ठीक चलेगी “. उस ने अपने टूल समेटे ,गाड़ी में रखे , कितने पैसे हम ने दिए याद नहीं और वोह लड़का चले गिया।

अब मघर सिंह ही बोला कि हमें अभी चलना चाहिए ताकि एक और रात रास्ते में गुज़ारनी न पड़े। एक दम सभी तैयार हो गए ,जैसे सभी जाने की जल्दी में हों। आधे घंटे में सभी तैयार हो गए और फ़तेह बुला कर चल पड़े। लोकल रोडज़ खत्म करके हम A 2 पर चढ़ गए। कुछ ही दूर गए तो बैल्ट फिर उत्तर गई। मैं नीचे उतरा और बैल्ट को पुली पर चढ़ा दिया। अब मघर सिंह बोला ,” गुरमेल ,गाड़ी तू चला ,तेरी ड्राइविंग का ढंग मुझे सही लगता है”. मैंने मघर सिंह को बोला ,” चाचा जी ,मुझे याद आया कि गाड़ी की इंशोरेंस तो फुफड़ के नाम है ,यह रिस्की है”. अब फुफड़ ही बोला ,” चल यार तू ,देखा जाएगा ” और मैं गाड़ी चलाने लगा।

A 2 से उत्तर कर हम ब्लैकवॉल टनल की ओर जाने लगे। जब टनल में दाखल हुए तो सभी के दिल धड़क रहे थे कि कहीं टनल में गाड़ी खड़ी ना हो जाए। रब रब करके हम टनल के उस पार चले गए और रौद्रम की सड़कों पर चलने लगे। रविवार का दिन था , इस लिए टाऊन में इतना रश नहीं था , इस लिए हम जल्दी ही मोटरवे पर पहुँच गए। बेछक उस दिन ठंड थी लेकिन आसमान साफ़ था और धुप खिली हुई थी। घर से खाने के लिए बहुत कुछ ले आये थे और सभी कुछ न कुछ खाने लगे। मेरे लिए कुलवंत फुफड़ को पकड़ा देती और मैं फुफड़ के हाथ से पकड़ कर एक हाथ से खाने लगता और दूसरे से ड्राइव करता जाता।

अब गाड़ी ठीक से चल रही थी और हम ने सोच लिया था कि रास्ते में कहीं भी गाड़ी खड़ी नहीं करेंगे। सभी खा पी रहे थे और हंसी की बातें भी हो रही थीं क्योंकि अब हौसला हो गिया था कि हम सही सलामत घर पहुँच जायेगे। जब हम कौवेंट्री के नज़दीक पहुंचे तो ख़ुशी से ही मैंने एक्सलरेटर पर पैर दबा दिया और गाड़ी तेज़ हो गई। एक दो मील पर जा कर फैन बैल्ट उत्तर गई। गाड़ी खड़ी करके मैं पीछे गिया और बैल्ट ठीक से पुली पे चढ़ा दी। अब मैं फिर पहले वाली स्पीड पे चलाने लगा। जल्दी ही हम ने मोटर को छोड़ दिया और हैंड्ज़वर्थ विल्टन रोड की तरफ जाने लगे। शायद तीन वजे होंगे कि हम ने फुफड़ के घर के सामने आ कर गाड़ी खड़ी कर दी।

मघर सिंह बोला ,” जो बोले सो निहाल “. अब सभी ने जोर से बोला ,”सत सिरी अकाल ” और हम गाड़ी से सामान उतारने लगे। कुछ सामान जो हमारा था ,हम ने अपनी गाड़ी में रख लिया और फुफड़ के घर में दाखल हो गए। घर आ कर पता नहीं हम को क्या मिल गिया था कि फुफड़ उसी वक्त बीयर की बोतलें ले आया और टेबल पर रख दीं। कुलवंत और बुआ अंडे बनाने लगीं और कुछ ही मिनटों में पलेटों में अंडे डाल कर टेबल पर रख दीं। अब सभी रिलैक्स हो कर गप्पें हांकने लगे और घर में ख़ुशी का माहौल छा गिया।

बातें करते करते निंदी के मासड़ निर्मल सिंह ने अचानक पगड़ी उतार कर टेबल पर रख दी और बोले ,” बई आज तो घर जा कर केसी स्नान करना है “, ( सिख जब सर के बाल धोते हैं तो इसे केसी स्नान कहते हैं ). सब ने जब निर्मल सिंह के सर की ओर देखा तो सभी हंस हंस कर लोट पोट हो गए क्योंकि निर्मल सिंह का सर तरबूज़ की तरह साफ़ गोल मोल था और सर पे कोई बाल नहीं था। हँसते हँसते मैंने भी बोल दिया ,” फिल्म खत्म हो गई और इस का हैपी एन्डिंग हो गिया” .हम उठ कर अपने टाऊन को जाने के लिए तैयार हो गए। फुफड़ ने निर्मल सिंह और शान्ति को UPLAND ROAD पर छोड़ने जाना था ,इस लिए हम बाई बाई कह कर अपने टाऊन को चल पड़े।

अपने घर आ कर हम जल्दी सो गए क्योंकि बेआराम बहुत हो चुक्के थे। सुबह उठ कर ज़िंदगी पहले की तरह शुरू हो गई। कुछ हफ्ते ऐसे ही बीत गए। एक दिन बुआ का टेलीफून आया कि वोह निंदी की बहन सुरिंदर के लिए लड़का देख रहे हैं ,सुन कर हम कुछ हैरान हो गए क्योंकि सुरिंदर की उम्र सत्रा अठरा साल से ज़्यादा नहीं होगी। रिश्ता बुआ की बहन शांती करा रही थी। सुरिंदर बहुत हुशिआर और खूबसूरत लड़की थी। जिस लड़के के साथ शादी की बात हो रही थी वोह सुरिंदर से पांच छै साल बड़ा होगा और वोह पूरा सिख था और उस ने अपनी दाहड़ी खुली और लंबी रखी हुई थी। यह लोग अफ्रीका से आये हुए थे और धर्म के कट्टर थे। हमें लगता है ,सुरिंदर को इस शादी के लिए मजबूर किया गिया था।

उस वक्त लड़किआं पगड़ीधारी से शादी कराना नहीं चाहती थीं। यह एक ऐसा दौर था जब हम से पहले आये लोगों के बच्चे बड़े हो रहे थे और उन की शादियां हो रही थीं। हम इंडिया पाकिस्तान से आये थे लेकिन बच्चे यहां जन्में और पड़े लिखे थे। हम भारती संस्कार ले कर आये थे लेकिन हमारे बच्चे गोरे बच्चों के साथ पड़ रहे थे। गोरे लड़के लड़किआं तो आपस में दोस्ती भी कर लेते थे और उन का आपस में किस करना तो बहुत ही मामूली बात थी लेकिन हमारे लोगों के लिए यह बातें मुसीबतें खड़ी कर रही थीं। हमारे लोग अपने बच्चों को बहुत समझाते थे कि गोरे बच्चों के साथ कहीं नहीं जाना ,उन के घर नहीं जाना ,ऐसा बहुत कुछ समझाते थे ,

ख़ास कर लड़किओं को जब स्कूल लेने जाते तो अगर लड़की किसी गोरे लड़के के साथ हंस कर बातें करते देख लेते तो लड़की को घर आ कर पुछा जाता कि वोह उस के साथ क्यों हंस रही थी। स्कूल में लड़किओं को स्कर्ट पहननी जरूरी थी ,इस लिए माँ बाप कुछ करने से असमर्थ थे लेकिन घर आते ही उसे शलवार क़मीज़ पहननी होती थी। गोरे लड़के लड़किआं सब जानते होते थे और हमारी लड़किओं को टौंट करते थे। क्योंकि मैं बसों पर काम करता था ,इस लिए मैं तो ऐसे ड्रामे रोज़ देखता रहता था ,जब हमारी लड़किआं लड़कों के साथ वोह बातें करती थी कि मैं देख सुन कर हैरान हो जाता था। जब यह ही लड़किआं घर आती थी तो ऐसे लगता था जैसे इन के मुंह में जुबां है ही नहीं थी।

यह वोह समय था जब किसी की लड़की किसी लड़के के साथ बातें करते हुए कोई देख लेता था तो लोग खुसर फुसर करने लग जाते थे। इज़त हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि हम ताज़े ताज़े भारत से संस्कार ले कर आये थे और इधर भारत तेज़ी से बदल रहा था जब कि हमारे विचारों की सूई वहीँ अटक कर रह गई थी । कितना ज़माना बदल गिया ,आज स्थिति यह है कि आज लोग खुद कहने लगे हैं कि बच्चे मुसलमान को छोड़ कर किसी से भी शादी करा लें और बच्चे मुसलमानों से भी शादियां करा रहे हैं क्योंकि यहां का कानून ही ऐसा है कि आप किसी को रोक नहीं सकते ।

उस वक्त बहुत ऐसे भी केस हुए थे जब हमारे लोगों ने इज़त से डरते अपनी लड़किओं को मार दिया था। एक तो हमारे साथ ही बस ड्राइव किया करता था ,( नाम नहीं लिखूंगा ). यह शख्स बहुत अच्छा इंसान था लेकिन हालातों ने उन को इतना मजबूर कर दिया कि उस ने बेटे को साथ ले कर अपनी लड़की को मार दिया था ( यह सब सुनी सुनाई और अखबार की ख़बरों की बातें हैं )। उस की लड़की किसी स्कूल में पड़ती थी और उस लड़की के सम्बन्ध किसी वैस्ट इंडियन से हो गए। वैस्ट इंडियन बहुत काले होते हैं ,इन से शादी कराना सारे खानदान का नाक काट हो जाता है। बाप बेटे ने लड़की को बहुत समझाया लेकिन वोह उन के साथ लड़ाई करने लगी।

बाप बेटे ने एक रात को लड़की के टुकड़े कर दिए। कुछ टुकड़े दरिया सैवर्न में डाल दिए ,कुछ एक सूटकेस में डाल कर किसी रेलवे लाइन पर रख दिए। रेलवे लाइन पर रखे सूटकेस के बारे में पुलिस तफ्तीश करने लगी लेकिन कोई सुराग मिल नहीं रहा था। वोह वैस्ट इंडियन कभी कभी लड़की के घर जा कर उस के बारे में पूछता तो जवाब यही मिलता कि वोह इंडिया गई हुई है। छै महीने बाद उस वैस्ट इंडियन ने पुलिस को रिपोर्ट कर दी कि यह लोग उस की गर्ल फ्रेंड के बारे में बताते नहीं हैं। इस से पुलिस ने बाप बेटे को पकड़ लिया। पता लगने पर उन पर मुकदमा चला और उन दोनों को जेल हो गई।

इसी तरह सुना था एक शख्स ने लड़की को मार कर चिमनी में दफना दिया था ,मुश्क आने पर वोह पकड़ा गिया था। एक शख्स हमारी रोड के नज़दीक ही था और बहुत शरीफ था लेकिन उस को अपनी लड़की के सम्बन्ध किसी और से होने का पता लगने पर उस को इतना छौक लगा कि उस ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसी बातें उस वक्त अखबारों में आती रहती थीं। यही वजह थी कि अपने लोग ना तो लड़किओं को ज़्यादा पड़ने देते थे ,ना बाहर काम करने देते थे ,बस जल्दी से शादी कर देते थे। इसी दौरान इंडिया में तब्दीली आ रही थी लेकिन हम वहीँ खड़े थे। यह ही वोह दिन थे जब सुरिंदर की शादी सतपाल से तय हुई थी।

चलता. . . . . . . . .

 

4 thoughts on “मेरी कहानी 116

  • Man Mohan Kumar Arya

    Puri katha padhi. Upanyas ki tarah rochak awam gyanvardhak hai. Hardic dhanyawad Sh Gurmail Singh ji.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, एक शादी की हैप्पी एंडिंग और केसी स्नान के प्रसंग से हैप्पी होते हुए हम दूसरी शादी पर पहुंचे ही थे, कि सैड एंडिंग के किस्सों ने स्वाद कड़वा कर दिया. वास्तव में यही तो ज़िंदगी है, बहरहाल इस एपीसोड से बहुत कुछ सीखने को मिला. आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन .बस यही जिंदगी है .हर कोई जो चाहता है ,ऐसा हो नहीं पाता,यही हमारे दुखों का कारण है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, एक शादी की हैप्पी एंडिंग और केसी स्नान के प्रसंग से हैप्पी होते हुए हम दूसरी शादी पर पहुंचे ही थे, कि सैड एंडिंग के किस्सों ने स्वाद कड़वा कर दिया. वास्तव में यही तो ज़िंदगी है, बहरहाल इस एपीसोड से बहुत कुछ सीखने को मिला. आभार.

Comments are closed.