पगड़ी की शान
पगड़ी आदमी के पहनावे की शान है,
पगड़ी सच में महानता की पहचान है,
एक दिन पगड़ी का दिमाग-
सातवें आसमान पर था,
उसे अपने शीर्षर्स्थ होने का अभिमान था,
बाकी सब पहनावा उसके लिए तुच्छ था,
आदमी की शान के लिए –
जैसे वही सब कुछ था,
उसने जूते को ‘पांव की जूती’ कह कर धिक्कारा
चुपचाप सुनता रहा , कुछ ना कह पाया बेचारा ,
“तुझे तो लोग पवित्र स्थान से भी दूर रखते है,
पर मुझे सर पर धार कितनी शान से चलते हैं, ”
पर एक दिन बीच बाजार में पगड़ी उछल गई ,
सफ़ेद पगड़ी पर भ्र्ष्टाचार की कालिख पुत गई
वह पगड़ी की शान वाला रंगे हाथों पकड़ा गया,
पुलिस आई और वह ज़ंजीरो में जकड़ा गया ,
सभी जूतों ने उसकी अच्छी खासी धुनाई कर दी ,
पगड़ी को तार तार कर के, अच्छी सफाई कर दी,
पर सही सोच से जूता बोला-
मैं कदम बढ़ाता हुआ आगे ही आगे बढ़ता हूँ,
स्वयं धूल मिटटी कंकड़ पत्थर झेलता हूँ
आदमी को उसकी मंज़िल तक ले जाता हूँ,
भगवान् का पवित्र स्थल , धूल से मैला न हो
इसीलिए मैं स्वयं ही बाहर रुक जाता हूँ,
अरे मूर्ख — यहाँ कोई छोटा नहीं, बड़ा नहीं, –
जो जहाँ है वही उसका स्थान और पहचान है,
ईमानदारी से अपना काम करने में ही शान है,
इंसान के आगे बढ़ने में हम सब का योगदान है,
सबके सामंजस्य से ही आदमी बनता महान है,
मेरा काम रास्तें की ठोकर से बचाना है,
पगड़ी इज़्ज़त है, आदमी की शान है-
अपना अपना काम ईमानदारी से करना-
यही सच्ची और सही सोच है,
पर सही मायने में पगड़ी जिम्मेवारी का बोझ है,
— जय प्रकाश भाटिया
२८/३/२०१६.
उम्दा रचना
प्रेरक पंक्तियाँ
thanks