संस्मरण

ईमानदारी

बात 1999 की है. हम पहली बार विदेश गए थे. यों तो बच्चों के साथ ही शॉपिंग करते थे, पर एक दिन टहलते-टहलते घर के पास ही एक दुकान पर हमें एक स्वेटर पसंद आ गया. बहुत बढ़िया स्वेटर और कीमत केवल डेढ़ डॉलर यानी मात्र 75 रुपए. हमने लेने का मन बनाया. दुकानदार महिला ने स्वेटर देने से पहले हमें विदेशी और अनजान देखकर कहा- ”आपने दुकान का नाम देखा है?” हमने देखा, तो वह इस्तेमाल किए हुए सामान की दुकान थी. फिर हमने स्वेटर तो नहीं ही लिया, पर उस दुकानदार महिला की ईमानदारी आज भी हमारे साथ है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

8 thoughts on “ईमानदारी

  • Man Mohan Kumar Arya

    Bahut achchi madhur smiriti. Mujhe yeh panktiya bhi yad ho aayee. Aisi baani boliye man ka aapa khoy, Auran ko sheetal Karen aapahu sheetal hoye. Namaste n Dhanyawad bahan ji.

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, बहुत दिनों के बाद आपके कलम दर्शन हुए हैं. आपको स्मृति मधुर लगी, यह आपके मन की मधुरता का प्रतीक है. मधुर दोहा भी मधुरिम कर गया. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

      • मनमोहन कुमार आर्य

        नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। मेरा कंप्यूटर कुछ ख़राब था। आज कुछ काम कर रहा है। शायद अब कुछ समय तक ठीक रहेगा। सादर।

        • लीला तिवानी

          प्रिय मनमोहन भाई जी, यह तो हम समझ ही रहे थे, कि आप इंग्लिश में लिख रहे थे, कुछ समस्या होगी. अब मनमोहन भाई आए, प्यारा-प्यारा सत्संग साथ लाए.

  • लीला बहन , बिदेश में तो सब नॉर्मल ही है लेकिन अगर हमारे देश में भी यह हो जाए तो कहने ही किया . मैं यह तो नहीं कहता कि हमारे देश में नहीं है लेकिन यह बातें किसी सभ्यता का हिस्सा ही बन जाए, तो ही बात बनती है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    काश ये ईमानदारी हर दिल में होती
    प्रेरक स्मरण साझा कर हमें अनुगृहित की आप

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी विभा जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

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