मुक्तक
===तराना ज़मीं==
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लिखूं वंदना मां तराना ज़मीं का/
बने गीतिका माँ घराना ज़मीं का/
खिले फूल उपवन सजाता रहूं मै/
सजे गीत शारद जमाना ज़मीं का /
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नीर============
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नीर नहीं दिल प्यास जमीं है/
बूँद -बूँद हरि आस महीं है/
नीर क्षीर रस ढूढ़ रहा मन/
कन्त बिना मन पास नहीं है/
==========क़लम=====================
क़लम क़लम कहाँ रही बिक गयी बाजार मे/
संग राज जब चली दिख गयी प्रचार मे /
देख-देख लिख रहे कहाँ मिलेगा भाव अब /
सरपरस्त बन गयी मन चली शृंगार मे /
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’