कविता

अपने ही आघात दे रहे…

अपने ही आघात दे रहे, आंसू दिन और रात दे रहे।
चीर रहे है मां का आंचल, मर्यादा को मात दे रहे॥
उठते ज़हरीले नारों से, शैतानी अत्याचारों से।
किया कलेजा छलनी मां का, देशद्रोह के प्रहारों से॥
लहु लहु में फर्क हो गया, देश प्रेम भी तर्क हो गया।
तर्को की आपाधापी में, देश प्रेम बस गर्क हो गया॥
अविश्वासों की धारा में, अपनेपन का सार बह गया।
भाई से भाई का, कहने सुनने का अधिकार बह गया॥
छोड रहें है नये शगूफ़े, सब कुछ तार तार कर देगे।
ये छुटभैये नही रुके तो, सबकुछ बंटाधार कर देगे॥
सभ्यताओं का देश हमारा, संस्कृति का उदगम स्थल।
सही आचरण नही किया तो, रह जायेगा बन बीता पल॥
श्रेष्ठ वही साबित होता, जो कर्म ध्वजा फहराता हो।
अपनी तदबीरों से, नित्य नवल आयाम बनाता हो॥
मत खंगालो बीती बातें, साधो लक्षय नवल युग पर।
सत्य कर्म के बनो पुजारी, दोष न वारो कलियुग पर॥
कथनी करनी के अंतर को, जब तक नही मिटाओगे।
भारत माता के आंचल में, स्वर्ग बसा नही पाओगे॥
मौका है सब कुछ करने का, हर हालत करना होगा।
दंभ छोड कर सचमुच, देश प्रेम को बस वरना होगा॥
बंद करो धर्मों की हिस्सेदारी, देश की संसद में।
कर्मकाण्ड की नही जरुरत, लोकतंत्र के मंथन में॥
बडी धर्म से मानवता है, और सभी से राष्ट्र बडा।
बदलो सोच हमारी ख़ातिर, वक्त रहेगा नही खडा॥
सदभावों को दरकिनार कर, जीत भले ही हो जाती।
दिल जीते जो जीत मिले, पर जीत वही मंगल गाती॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “अपने ही आघात दे रहे…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन
    उम्दा रचना

    • सतीश बंसल

      आभार आद. विभा जी

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