कजरे की धार नही मोतियों के हार नही..
कजरे की धार नही मोतियों के हार नही
चेहरा रुप रंग अंग सब बे मिसाल है
बिन श्रृंगार रुप देख दिल बोल उठा
वाह कुदरत का क्या खूब कमाल है
मुस्काते होठ जैसे बाती जले दीप की
थोडी हया कर रही गालों को गुलाल है
देख ये अनोखा रुप फूलों को जलन हुई
कलियों को देख तुम्हे हो रहा मलाल है।
लगता है काली घटाओं के जैसा अहसास
हवाओं के साथ उडी जुल्फें सम्भालिये
पहले से ही मदहोशी छाई है बहारों में
मदहोश नयनों का जादू न यूं डालिये
देखो न लगा दे आग उडती चुनर कहीं
शोले इस तरहा से न सरे आम वारिये
मचले दिलों पे ढाओ सितम न इतना भी
आंचल को जरा हौले हौले से उतारिये॥
कंचन सी काया और उसपे चुनर धानी
सूरत का नूर बेमिसाल मालामाल है
जो भी देखे आह भरे मिलन की चाह करे
हर जवां दिल में तुम्हारा ही ख़याल है
रती भी जो देखे तुम्हे सज़दे में झुके सर
देख रुप तेरा अप्सराएं भी बे हाल है
देख तुम्हे हर कोई बोल उठा दिल थाम
वाह खूबसूरती कमाल बे मिसाल है॥
सतीश बंसल
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब सृजन
शुक्रिया आद.. राजकिशोर जी