कुण्डली/छंद

कजरे की धार नही मोतियों के हार नही..

कजरे की धार नही मोतियों के हार नही
चेहरा रुप रंग अंग सब बे मिसाल है
बिन श्रृंगार रुप देख दिल बोल उठा
वाह कुदरत का क्या खूब कमाल है
मुस्काते होठ जैसे बाती जले दीप की
थोडी हया कर रही गालों को गुलाल है
देख ये अनोखा रुप फूलों को जलन हुई
कलियों को देख तुम्हे हो रहा मलाल है।

लगता है काली घटाओं के जैसा अहसास
हवाओं के साथ उडी जुल्फें सम्भालिये
पहले से ही मदहोशी छाई है बहारों में
मदहोश नयनों का जादू न यूं डालिये
देखो न लगा दे आग उडती चुनर कहीं
शोले इस तरहा से न सरे आम वारिये
मचले दिलों पे ढाओ सितम न इतना भी
आंचल को जरा हौले हौले से उतारिये॥

कंचन सी काया और उसपे चुनर धानी
सूरत का नूर बेमिसाल मालामाल है
जो भी देखे आह भरे मिलन की चाह करे
हर जवां दिल में तुम्हारा ही ख़याल है
रती भी जो देखे तुम्हे सज़दे में झुके सर
देख रुप तेरा अप्सराएं भी बे हाल है
देख तुम्हे हर कोई बोल उठा दिल थाम
वाह खूबसूरती कमाल बे मिसाल है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “कजरे की धार नही मोतियों के हार नही..

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब सृजन

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया आद.. राजकिशोर जी

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