गीतिका/ग़ज़ल

दौर-ए-गर्दिश है मगर उसूल संभाल रखे हैं..

दौर-ए-गर्दिश है मगर उसूल संभाल रखे हैं।
तूफां के साये में सच के दीप बाल रखे है॥

मुश्किल है बहुत सच का ये सफ़र माना।
हमनें मग़र मंजिल के ख़्वाब पाल रखे है॥

बढा रहे हैं तल्खियां जो हमारे रिश्तों में।
अमन के दुश्मन ने वो मुद्दे उछाल रखें है॥

शक वाज़िब है इन नापाक हरकतों पर।
जानें किस मंशा से नाहक सवाल रखे हैं॥

कई और ज़रुरी मसाईल बाकी हैं अभी।
गरीबी के भूख के कलंकित काल रखे है॥

पहले ही कुछ कम परेशान नही ज़िन्दगी।
उस पर मज़हबी जज़बात उबाल रखे हैं॥

पशोपेश में है ग़रीब जिये तो जिये कैसे।
हर कदम नफ़रतों ने जाल डाल रखे है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.