विधाता छंद में एक रचना
बनो तो कृष्ण तुम मेरे, तुम्हारी मैं बनूँ राधा।
चढ़ा है प्रीत का पारा, कभी उतरे नही आधा।
तुम्ही चातक बनो प्यासे, बनूँ मैं मेघ की बूँदें।
रखूँ तुमको बना काजल, न आँखों को कभी मूँदें।
जलाये मैं सदा रखती, तुम्हारे नाम की बाती।
गिरा दो नेह की बूँदें, सुबह से साँझ गहराती।
तुम्हारी प्रेम दीवानी, रहूँ बस साथ मैं तेरे।
न जोगन हूँ नही मीरा, लगा लो सात तुम फेरे।
— गुंजन अग्रवाल “गूँज”