ग़ज़ल
तू मेरा दिल, मेरा जिगर, मेरी जान मेरे महबूब,
तू मेरी कसम, मेरी दुआ, मेरा ईमान मेरे महबूब
तेरे नाम से ही होती है सुबह मेरी हर रोज़,
तेरे नाम से ही ढलती है हर शाम मेरे महबूब
इश्क उतर आया है अब बेशर्मी की हद पर,
मैं गली-गली पुकारूँ सरे आम मेरे महबूब
आवाज दे तुम्हें कोई तो जवाब देता हूँ मैं,
तू बन गया है मेरी पहचान मेरे महबूब
मिसरी घुल जाए जैसे मुँह में बोलते ही,
तेरे होंठों से भी मीठा है तेरा नाम मेरे महबूब
मयखाने तेरी आँखों के तू खोल दे ज़रा,
मैं पी लूँ ज़रा मुहब्बत का जाम मेरे महबूब
नाकाम हो गया हूँ मैं दुनिया की नजर में,
तुझे चाहना ही अब है मेरा काम मेरे महबूब
अश्कों की स्याही में डुबो दिल की कलम को,
आसमां पे लिखा इश्क का पैगाम मेरे महबूब