हाइकु
विष अमृत
है सागर मंथन
महाप्रसाद
देव असुर
करते हैं संग्राम
नहीं विराम
गोधूलि बेला
छाईं नभ लालिमा
अट्टहास में
शादी की बेला
दूल्हा चला अकेला
मन का रेला
उज्जैन कुंभ
है सिंहस्थ भाव
अमृत स्नान
गंगा यमुना
अदृश्य सरस्वती
संगम स्नान
जापानी काव्य
रच सत्रह वर्ण
चमके स्वर्ण
हायकू विधा
सार गर्भित छ्न्द
भाव पूर्ण
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
प्रिय राजकिशोर भाई जी,
हाइकु ताज
सजे आपके माथ
राज जी ‘राज’
अति सुंदर.
हायकु साथ
बहन जी प्रणाम
जापनी काव्य