हास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : गुड़ से मीठा नाम है !

वैसे तो गुड़ और गुण दोनों की ही समाज में महत्वपूर्ण भूमिका है देखें तो दोनों ही समाज में मिठास बढ़ाते हैं ,साथ ही गुरु की भी क्योंकि गुरु न सिर्फ व्यक्ति विशेष को वरन् सम्पूर्ण समाज को एक दिशा देता है लेकिन एक युग पहले तक गुड़ की भी मिठास लाजवाब हुआ करती थी और गुण की भी कद्र थी हांलांकि की गुरु की भूमिका वहीँ से बदलने लगी थी ! जो की आज तक कायम है और शिक्षा से बेहतर आजकल कोई धंधा नहीं है आजकल स्कूल पैसे उगलने की खान बन गये गये हैं और शिक्षा आज के एकलव्यों को भी अंगूठा दिखाती नज़र आ रही है ।
जब गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अकर्म को भी कर्म साबित करते हुए एकलव्य से सिर्फ खुन्दस निकाली, खुन्दस इसलिए कि उन्हें इतनी बात नहीं पची ; कि मेरी आज्ञा के बिना मेरी ही मूर्ति को आधार बनाकर ,कोई इतना आगे कैसे बढ़ गया! फिर तो सब उनकी मूर्तिया ही बनाने लगेंगे और उन्हें कौन पूछेगा और इतिहास गवाह है कि उसके बाद किसी ने भी गुरु की प्रतिमा बना कर अभ्यास नहीं किया ! देखा जाये तो गुरु द्रोणाचार्य का समाज को यही सन्देश भी था और वे कामयाब रहे।

ये और बात है की मनुष्य को अगली घड़ी का पता नहीं होता कि आनेवाले पल में क्या होने वाला है न ही गुरु द्रोण की ही तरह ये पता रहता है; की अपने पहलू में ही अपनी मौत को लेकर घूम रहे हैं !न सिर्फ घूम रहे हैं, वल्कि ये भी की मौत को इतना अचूक बना रहे हैं कि निशाना सीधे आँख में ही लगे और निशाना लगा भी !

खैर वो तो इतिहास रहा अब आज के समय में जब मुट्ठी भर लोग गुरु द्रोण एकलव्य और इस घटना से परिचित होंगे तो जगह विशेष का नाम गुण गांव रखा जाये या गुरु ग्राम क्या फर्क पड़ता है गुरुग्राम में अपने घर पहुँचने की न तो दूरी ही कम हुई न किराया ही , है कि नहीं ?? लङखङाती जुबान से घीरे घीरे गुड़ का गुरु हो ही जाना है। मेरा मतलब गुड़ को तो चीटियों को खा ही जाना है !! जगत प्रसिद्ध कहावत है भैया, कि गुड़ में ही चीटियाँ लगती है मेरा मतलब गुरु को भी चीटियाँ काटती हैं हाँ भैया बिल्कुल काटती हैं !! जब गुरु – गुरू ही रह जाए और चेला शक्कर बन जाये !अरे नहीं समझे ! वो ही अपने हज़ारे जी और उनकी क्रेजी बॉल !!

भैया हज़ारे जी ने जितने भी गोल साधे सिर्फ बरगलाने के लिए साधे और जरा न अंदेशा लगने दिया की भैया मंशा क्या है ! मंशा तो आधुनिक गांधी बनने की थी ! लेकिन गलती ये कर गए कि जनता को निरा मूर्ख समझ बैठे स्वामी जी, और चेला तो और भी आगे निकल गया चेले ने तो सपने में भी अंदेशा न लगने दिया कि निशाना मुख्यमंत्री की कुर्सी पे था लोग ऐवें ही जमीन पे लोट लगाते रह गए !

हाँ भैया लोट ही लगा रहे हैं जब माया मिली न राम, तो राहुल बाबा करें भी क्या जिस मोहरे को वे सुरक्षित मोहरा समझ कर छुपा के रखे थे , उसने तो उन्हीं को धता बताते हुए निरा बुद्धू बना दिया । होता है भैया होता है बड़े बड़े भारत में छोटी छोटी बातें होती रहती है इटेलियन सिनोरिटा !!

अब तो बात गुण की है गुड़ की नहीं भैया, जितना गुड़ मेरा मतलब चीनी घोलोगे उतना ही मीठा होगा मेरा मतलब देश अब तरक्की की मांग कर रहा है काम की मांग कर रहा है और बुराई भी क्या है ! खाली बातों से कुछ नहीं होने वाला कुछ करके दिखाना पड़ेगा. नाम चाहें गुणगाँव करो या गुरु ग्राम !! है कि नहीं !

सही कहा न ?

One thought on “हास्य-व्यंग्य : गुड़ से मीठा नाम है !

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी अंशु जी, अति सुंदर. है कि नहीं !

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