कविता : प्यासी धरा
धरती प्यासी मानुस प्यासा
तपते भाष्कर बेहाल मानुस
..ताल ..कुए ..बोर है सूखे
बूंद-बूंद प्यास में तडपते
हरे भरे पेड़ भी सूखे
पक्षी भी है बेहाल
पृथ्वी है यदि ठोस तरल
पशुओ का मत पूछो हाल
मानुस जल के लिए है तरसे
घुलते जहर या सूखते नदी ताल
संघर्ष में अब जीवन है प्यासा
पिघला हिम लाकर नादिया
धरती की प्यास बुझाए
कब जाए गर्मी महा बरसे
पारा चढ़ा ज्यादा इस साल
— राज मालपानी