कविता

कविता : प्यासी धरा

धरती प्यासी मानुस प्यासा
तपते भाष्कर बेहाल मानुस
..ताल ..कुए ..बोर है सूखे
बूंद-बूंद प्यास में तडपते
हरे भरे पेड़ भी सूखे
पक्षी भी है बेहाल
पृथ्वी है यदि ठोस तरल
पशुओ का मत पूछो हाल
मानुस जल के लिए है तरसे
घुलते जहर या सूखते नदी ताल
संघर्ष में अब जीवन है प्यासा
पिघला हिम लाकर नादिया
धरती की प्यास बुझाए
कब जाए गर्मी महा बरसे
पारा चढ़ा ज्यादा इस साल

राज मालपानी 

राज मालपाणी ’राज’

नाम : राज मालपाणी जन्म : २५ / ०५ / १९७३ वृत्ति : व्यवसाय (टेक्स्टायल) मूल निवास : जोधपुर (राजस्थान) वर्तमान निवास : मालपाणी हाउस जैलाल स्ट्रीट,५-१-७३,शोरापुर-५८५२२४ यादगिरी ज़िल्हा ( कर्नाटक ) रूचि : पढ़ना, लिखना, गाने सुनना ईमेल : rajmalpani75@gmail.com मोबाइल : 8792 143 143