ग़ज़ल : पिला दी हुस्न की हाला
दीदारे यार आया था पिला दी हुस्न की… ..हाला ,
दस्त से गिर गई हाला लबों पे तिर गई…. हाला |
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कटोरे नैन भर पी ली है मदिरा प्रेम की… जिसने ,
चढ़ेगी क्या उसे फिर इस जहाँ की कोई भी .हाला |
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समंदर में तू उतरी पर समंदर को मिले …..मोती ,
नहाकर आ गई लेकिन समंदर कर गई …..हाला |
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पिलाने और पीने का चला है दौर सदियों…… से ,
कभी मीकी कभी तुलसी कभी मीरा ने पी ..हाला |
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हुई जो शाम प्यासों का लगा जमघट तेरे दर …पर ,
हुई है रात काली फिर से तन्हा हो रही …..हाला |
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शराबी हो गया है ये तेरा आलोक बिन …….पीये ,
न तुम ने दी कभी हाला न मैंने पी कभी …हाला |
— आलोक अनंत
वाह्ह बहुत बढियाँ