गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : ये कैसा मर्ज है सावन

धरा पे टूट पड़ता है ये कैसा मर्ज है …..सावन ,
धरा के वक्ष पे तेरी उँगलियाँ दर्ज है ….सावन |
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कतारों में खड़े हैं पेड़ प्यासे आप ……….आयेंगे ,
घड़ा काँधे उठाकर आइये अब अर्ज है …सावन |
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नदी के होठ सूखे हैं वादन पे भी फफोले….. हैं ,
बुझा दो प्यास होठों की तुम्हारा फर्ज है सावन |
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मिलकर सुर सुरों से झींग दादुर छेड़ते ..सरगम ,
तुम्हारे गीत गाते हैं तुम्हारी तर्ज है ……सावन |
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ग़ज़ल भी गीत भी तेरे दिए मुक्तक कई मुझको ,
चलो माना तेरा आलोक पर ये कर्ज है …सावन |

आलोक अनंत 

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

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