कविता : मेरे मखमली से ख्वाब…
जो था, अब नहीं रहा
जो है वो कभी था ही नहीं
एहसास मे दूरियों और
इन्तजार की कसी गाँठ
दम घोंट रही हो…. जैसे
फिर भी एक राहत सी है
जब आँखे मुंदती हूँ
तो एक उम्मीद की
झालर सी बुनती हूँ
और मुस्कुरा कर
यही सोचती हूँ कि
तुमसे ही जुडे हैं
पर तुमसे बेहतर है
मेरे मखमली से ख्वाब…
— साधना सिंह
अच्छी रचना