कविता

कविता : मेरे मखमली से ख्वाब…

जो था, अब नहीं रहा
जो है वो कभी था ही नहीं
एहसास मे दूरियों और
इन्तजार की कसी गाँठ
दम घोंट रही हो…. जैसे
फिर भी एक राहत सी है
जब आँखे मुंदती हूँ
तो एक उम्मीद की
झालर सी बुनती हूँ
और मुस्कुरा कर
यही सोचती हूँ कि
तुमसे ही जुडे हैं
पर तुमसे बेहतर है
मेरे मखमली से ख्वाब…

साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)

One thought on “कविता : मेरे मखमली से ख्वाब…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अच्छी रचना

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