जननी
तू ममता है तू है माता
पीड़ा सह सृष्टि रचाई है
तू ही जननी कहलाई है |
तेरी कोख में रचना रहती है
तू प्रसव वेदना सहती है
हर धड़कन तुझमे समाई है
तू ही जननी कहलाई है |
नैनों से अविरल धार बहे
आँचल से दूध अपार बहे
तूने स्नेह सुधा बरसाई है
तू ही जननी कहलाई है |
तू ईश्वर का वरदान लगे
सारी खुशियों का जहां लगे
तेरी करुणा में गहराई है
तू ही जननी कहलाई है |
वेदों का सार तुझी में है
हर घर परिवार तुझी में है
हर कर्म तेरा सच्चाई है
तू ही जननी कहलाई है |
तेरा मन ममता का सागर है
स्पर्श संजीवनी गागर है
हर रोम में बसी खुदाई है
तू ही जननी कहलाई है |
चंदा सी प्यारी सूरत है
पावन पवित्र सी मूरत है
जीवन बगिया महकाई है
तू ही जननी कहलाई है |
ये पुण्य धरा महकाने को
मातृत्व का सुख उपजाने को
तू स्वर्ग लोक से आई है
तू ही जननी कहलाई है |
— पूनम पाठक
वाह
अति सुंदर रचना
तहेदिल से आभार आपका, विभा रानी जी
ममतामय रचना पढ माँ की याद आ गई !!बहुत सुंदर बधाई हो!!
बहुत बहुत धन्यवाद रमेश कुमार सिंह जी