कविता

जननी

तू ममता है तू है माता
पीड़ा सह सृष्टि रचाई है
तू ही जननी कहलाई है |

तेरी कोख में रचना रहती है
तू प्रसव वेदना सहती है
हर धड़कन तुझमे समाई है
तू ही जननी कहलाई है |

नैनों से अविरल धार बहे
आँचल से दूध अपार बहे
तूने स्नेह सुधा बरसाई है
तू ही जननी कहलाई है |

तू ईश्वर का वरदान लगे
सारी खुशियों का जहां लगे
तेरी करुणा में गहराई है
तू ही जननी कहलाई है |

वेदों का सार तुझी में है
हर घर परिवार तुझी में है
हर कर्म तेरा सच्चाई है
तू ही जननी कहलाई है |

तेरा मन ममता का सागर है
स्पर्श संजीवनी गागर है
हर रोम में बसी खुदाई है
तू ही जननी कहलाई है |

चंदा सी प्यारी सूरत है
पावन पवित्र सी मूरत है
जीवन बगिया महकाई है
तू ही जननी कहलाई है |

ये पुण्य धरा महकाने को
मातृत्व का सुख उपजाने को
तू स्वर्ग लोक से आई है
तू ही जननी कहलाई है |

पूनम पाठक

पूनम पाठक

मैं पूनम पाठक एक हाउस वाइफ अपने पति व् दो बेटियों के साथ इंदौर में रहती हूँ | मेरा जन्मस्थान लखनऊ है , परन्तु शिक्षा दीक्षा यही इंदौर में हुई है | देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से मैंने " मास्टर ऑफ़ कॉमर्स " ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री प्राप्त की है | इंदौर में ही एकाउंट्स ऑफिसर के जॉब में थी | परन्तु शादी के बाद बच्चों को उचित परवरिश व् सही मार्गदर्शन देने के लिए जॉब छोड़ दी थी| अब जबकि बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं तो अपने पुराने शौक लेखन से फिर दोस्ती कर ली है | मैं कविता , कहानी , हास्य व्यंग्य आदि विधाओं में लिखती हूँ |

4 thoughts on “जननी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    अति सुंदर रचना

    • पूनम पाठक

      तहेदिल से आभार आपका, विभा रानी जी

    • पूनम पाठक

      बहुत बहुत धन्यवाद रमेश कुमार सिंह जी

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