कविता

अंकुर

Indian-farmer-droughtसूखे की मार झेल रहे किसानों की मनोस्थिति व्यथित करने वाली होती है परन्तु उनकी आस की फसल ही हमारा पेट भरने में सहायक होती है….
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बरसने लगीं बूँदें
टप-टप लगातार
फ़िर लगी झड़ी
खारे पानी की
इक धार बही
आँखें आबशार हुयी….
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ना खेत सिंचे
ना भरीं दरारें
खलिहान सूने
सूखा सूखा
मन भारी
ज़मीं बेज़ार हुयीं….
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दिन दिन सूरज
तपता सा मन
पर बन पतंग
ढूँढे बादल
आशा की डोर
लम्बी हर बार हुयी…
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कि उम्मीदों के अँकुर ज़रा सी नमी से ही फूट पड़ते हैं … !!
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शिप्रा खरे 

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com

5 thoughts on “अंकुर

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर सृजन

    • शिप्रा खरे

      हृदयतल से आभार आदरणीय विभा जी

    • शिप्रा खरे

      हृदयतल से आभार आदरणीय विभा जी

    • शिप्रा खरे

      बहुत बहुत धन्यवाद और आभार रमेश जी

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