मुक्तक
बजरंगी सा वीर नहीं जो छू ले सूरज को
संपाती के पर जल जाते छूते सूरज को
कल्पना करना सहज पर सत्य कोसों दूर है
मन भावना की भर उड़ाने निकले सूरज को
तीन पाँच करते रहे चिड़िया चुग गइ खेत
नौ दो ग्यारह हो गयी रहे उड़ावत रेत
खेत नहीं है इंच भर नाम धरे महिपाल
सूर वीर खुद को कहे – रण मे होते खेत
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
bahut khub
आदरणीया जी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन
वाह ….
वाह ….
आदरणीया जी स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन