मेरी कहानी 130
संदीप का मन अब गाँव में लग गया था, ऊपर से पिंकी रीटा का खत आ गया, इस से संदीप खुश हो गया। इस खत में इन बच्चों की आपस की बातें थीं जिन में ज़्यादा तर कुछ सिंगरों के बारे में थीं जो उस समय बहुत प्रसिद्ध थे, ख़ास कर शेकिन स्टीवन । मैं संदीप को अक्सर फगवाड़े ले जाता था और उन्हें अपना स्कूल दिखाता और मुझे भी पुराने दिनों की याद आ जाती। जब भी कभी मैं सतनाम पुरे पोस्ट ऑफिस के करीब आता तो मुझे अपने दोस्त सुरिंदर की याद आ जाती जो इसी पोस्ट ऑफिस में क्लर्क लगा हुआ था और उसी ने ही पहले मुझे बताया था कि मेरा पासपोर्ट बन कर आ गया था और उस ने खुद ही राणी पुर की डाक में भेज दिया था।
एक दिन हम लच्छू के ढाबे के नज़दीक जा रहे थे कि एक बुड़ीआ आई और संदीप को अपनी बाहों में ले कर उसे चूमने लगी जैसे अक्सर दादी माएं पियार करती हैं और कहने लगी, ” यह तो मेरा बब्लू पुतर है ” और फिर बोलने लगी,” मेरा पोता भी ऐसा ही है, कनेडा में रहता है, कभी कभी आता है “, फिर उस ने अपने बैग से एक सेब निकाल कर दिया और चली गई। मैं अपनी माँ के बारे में सोचने लगा कि वह भी अपने पोतों को ऐसे ही पियार करती थी । रानी पुर में तो पप्पू मेरा जैसे एक सहारा ही बन गया था। पपू एक तो हंसमुख तबीयत का था दूसरे हर काम में मेरी सहायता कर देता था ।
एक दिन संदीप कुछ उदास सा हो गया। मैंने पपू को पुछा कि गाँव में कोई टेलीफोन था या नहीं। मैं सोच रहा था कि अगर इंगलैंड को टेलीफोन लग जाए तो संदीप की रीटा पिंकी से बात करा दूँ। तरसेम यानि पप्पू बोला,” भा जी टेलीफोन गाँव में एक ही है और वह लड्डे के घर है “. संदीप को ले कर मैं लड्डे के घर की ओर चल पड़ा। लड्डा मुझे गियान की दूकान के पास ही मिल गया। मैंने लड्डे को सारी बात बताई तो लड्डे ने कहा कि चलो कोशिश करके देख लेते हैं, अगर लाइन मिल जाए। टेलीफोन एक्सचेंज फगवाड़े में होती थी। इंग्लैंड की सीधी लाइन तो मिलनी असम्भव ही थी। घर पहुँच कर लड्डे ने एक्सचेंज को टेलीफोन किया। एक्सचेंज में जो ऑपरेटर था, वह लड्डे को जानता ही था। लड्डे ने उस को बोला,” ओ देस राज! यार मेरे दोस्त का लड़का है और बहुत उदास है, कोशिश करके देख अगर इंगलैंड की लाइन मिल जाए ” लड्डे ने उसे इंगलैंड का नंबर बताया। देस राज बहुत देर तक कोशिश करता रहा लेकिन लाइन उसे मिल नहीं रही थी। अब तो इस बात पर मुझे हंसी ही आती है लेकिन उस वक्त कितना मुश्किल था बाहर को टेलीफोन करना। इस के बाद भी कई दिन हम कोशिश करते रहे लेकिन लाइन मिली नहीं।
इन्हीं दिनों में होली का तयोहार था। सोनू ने तरह तरह के रंग और दो पिचकारियां ले रखी थीं और होली के दिन छत पर चढ़ कर बच्चों ने एक दूसरे पर रंग फेंका और मैंने बच्चों की फोटो खींची। मेरी माँ तो उस दिन की ही बहुत खुश थी जब हम राणी पुर आये थे। रात को चारपाइयों पर बैठे हम रजाइयां ऊपर ले लेते और बहुत बातें करते। हम हारमोनियम बजाना शुरू कर देते और कुछ गाने मैंने यहां रिकार्ड भी किये थे और पप्पू साथ में एक डब्बे के साथ ढोलकी बजाता था। यह अधूरे गाने अब भी मेरे पास हैं। कभी हम माँ को मजबूर करते कि वह भी गाये। कभी कभी माँ हारमोनियम बजाने लगती और उस का एक ही गाना होता था,” आ गया बाबा वैद रोगीआं दा”
मैं लिखना भूल गया कि मेरा छोटा भाई निर्मल उस समय लिबिआ गया हुआ था, नहीं तो मज़ा और भी जिआदा आता। निर्मल बहुत धार्मिक विचारों का है और उस ने छत पर एक छोटे से कमरे में ग्रंथ साहब की बीड़ रखी हुई है और कभी कभी मैं इस कमरे में आ कर माथा टेकता और कुछ पत्रे पड़ता। कुछ समझ आते, कुछ नहीं लेकिन अच्छा लगता। इसी कमरे के साथ ही वह चक्की पडी हुई थी जो कभी देश विभाजन के वक्त मेरे बड़े भाई ने किसी मुसलमान के घर से लाइ थी और उसे दादा जी के गुस्से का शिकार होना पड़ा था। यह चक्की देख कर मुझे उन काले दिनों की याद आ जाती।
एक दिन मैनेजर संधू मुझे कहने लगा कि मैं और पप्पू उन के घर में खाना खाएं। मुझे इस में कोई अजीब बात नहीं लगी और दुसरी शाम को मैं और पप्पू संधू के घर चल गए जो बैंक के ऊपर ही था। यह सारी बिल्डिंग अमर सिंह की थी जो इंगलैंड में रहता था और इंगलैंड इन के घर में ही कभी मेरे पिता जी रहा करते थे। यह घर मॉस्टिन स्ट्रीट में था और जब पिता जी गियानी जी से मिले थे तो गियानी जी ने पिता जी को कहा था,” साधू सिंह जी, यह घर आप के रहने के काबल नहीं है ” और इस के बाद ही पिता जी गियानी जी के साथ रहने लगे थे और यहां से ही हमारी गियानी जी और उन के सारे परिवार के साथ नजदीकीआं बड़ी थीं जो अब तक सगे सम्बन्धिओं की तरह है। अब इस अमर सिंह ने इंडिया आ कर यह मकान बनाया था किओंकी अमर सिंह की ज़मीन इस मकान के नज़दीक ही थी। अमर सिंह रिटायर हो चुक्का था और कभी इंडिआ आ जाता और कभी इंगलैंड आ जाता किओंकी इस के लड़के इंगलैंड में ही रहते थे।
दुसरी रात को मैं और पप्पू मैनेजर संधू के घर जा पहुंचे। एक बड़ा सा कमरा था जो बैड रूम भी था और सिटिंग रूम भी और साथ में रसोई थी। संधू की पत्नी अपनी छोटी सी बच्ची को लिए आई और हमें सत सिरी अकाल बोला। वह पडी लिखी लड़की थी और उस की बाणी में मधुरता थी। कुछ बातें उस ने कीं लेकिन अब मुझे याद नहीं और फिर वह रसोई में खाना बनाने के लिए चली गई। सन्धु उठ कर रसोई में गया और फ्रिज में से दो बीअर की बोतलें ले आया और ग्लासों में डालने लगा और हम बातें करने लगे। कुछ देर बाद उस की पत्नी हमारे आगे एक पलेट मीट की रख गई। संधू भी बहुत खुश दिल था और अपने कालज के दिनों की बातें करने लगा।
बातें करते करते मेरी निगाह खूँटी पर टंगे हुए पिस्टल पर पडी जो चमड़े के केस में था। मैं बोल उठा,” सन्धु साहब आप पिस्तौल के भी शौक़ीन हो तो वह हंस पड़ा और बोला,” यह एक मजबूरी ही समझो वर्ना मेरे जैसे साहितिक विचारों के शख्स से इस पिस्तौल का कोई मेल ही नहीं है ” और फिर वह एक घटना बताने लगा जिस की वजह से यह पिस्तौल उसे लेना पड़ा था । सन्धु बोला, गुरमेल सिंह ! तुझे याद है जब हम एक दिन खेतों की तरफ जा रहे थे तो एक लड़का रास्ते में हमें मिला था और मिन्नतें कर रहा था ?” हाँ याद है मैंने जवाब दिया।
संधू बोला,” बैंक के बड़े अधिकारी अक्सर यहां आते ही रहते हैं और कई दफा उन की सेवा भी करनी पड़ती है, इसी तरह एक दिन कुछ बड़े अधिकारी आये और उन को ड्रिंक दे कर मैंने उन की आवभगत की, वह तो गाड़ी में वापस चले गए लेकिन मैने उस दिन कुछ ज़्यादा ही पी ली थी। रात को मैं सो गया, जब सुबह को उठ कर शौच के लिए बाहर आया तो हर कोई मुझ से पूछ रहा था कि मैं ठीक ठाक हूँ, कोई नुक्सान तो नहीं हुआ, कोई चोट तो नहीं लगी ? हैरान हुआ मैं जब घर आया तो अपनी पत्नी से पुछा कि रास्ते में लोग इस तरह के सवाल कर रहे थे, कुछ हुआ था किया ?” तो पत्नी बोली” आप ने ज़्यादा पी ली थी लेकिन रात को बाहर बहुत लड़के शोर मचा रहे थे और आप को गन्दी गालिआं दे रहे थे कि ओए मैनेजरा बाहर निकल, तेरी बहन की तेरी मां की ….. और मैंने आप को जगाया नहीं था कि पता नहीं किया हो जाए” .
और गुरमेल सिंह ! मैंने उसी वक्त हैड ऑफिस को टेलीफोन किया और मुझे जवाब आया कि मैं टेलीफोन की इंतज़ार करूँ। आधे घंटे बाद मुझे पुलिस सुपरडैंट का टेलीफोन आया कि हम कुछ दरवाज़े खिड़कियां तोड़ दें, सेफ पर किसी हथौड़े से पेंट उखाड़ दें और कुर्सियां मेज इधर उधर फेंक दें और बैंक बंद रखें, एक घंटे में वह आ रहे हैं। जैसे कहा गया था, मैंने कर दिया। कुछ देर बाद दो जीपों में राइफलें पकडे दस बारह सिपाही और उन का ऑफिसर आ गए। आते ही कुछ लड़कों को पकड़ पकड़ कर वोह पीटने लगे। गाँव में शोर मच गया कि बैंक पर डाका पढ़ गया है और पुलिस बदमाशों को पकड़ रही है। पुलिस के डर से सारा गाँव दहल गिया और बहुत लड़के पकड़ लिए गए।
पुलिस ने पीट पीट कर दोषिओं का पता लगा लिया, एक दो दौड़ गए और कुछ लड़कों को पकड़ कर पुलिस स्टेशन ले गए। इन में कई लड़के जालंधर काम करते थे जिन की नौकरीआं छिन गई और अभी तक कोर्ट में तारीखें भुगत रहे हैं। इसी लिए वोह लड़का जो रास्ते में मिला था मिनतें कर रहा था कि उस की नौकरी चली गई और तारीखें भुगतने के कारण उस का बहुत खर्च हो रहा था। वोह लड़का चाहता था कि मैं उस की मदद कर दूँ। इस घटना के बाद ही मुझे मशवरा दिया गिया था कि गाँवों में ऐसे वाकिआत से निपटने के लिए मैं पिस्तौल ले लूँ और मैंने ले लिया किओंकि लाइसैंस की भी कोई दिकत नहीं थी।
खाना खा कर मैं और पप्पू वापस आ गए और कुछ दिन बाद हम ने भी संधू को अपने घर इनवाईट किया और साथ ही मैने लड्डे को भी इन्वाइट कर लिया। छोटी भरजाई परमजीत ने बहुत अच्छे अच्छे खाने बनाये। शाम को रौनक हो गई और हम बातें करने लगे। बातें करते करते लड्डे ने अपना पिस्तौल दिखाने की ग़रज़ से संधू को बोला, ” सन्धु साहब अगर आप को कोई काम हो तो बताना “, अब संधू ने भी अपना पिस्तौल दिखा कर कहा,” हरमिंदर सिंह यह तो बहुत अच्छी बात है और अगर आप को भी कोई जरुरत हो तो झिझकना नहीं “. बातों को किसी और दिशा में जाते हुए देख कर मैंने हंस कर कहा,” तुम दोनों बहुत बहादर हो, तुम फ़ौज में भर्ती हो जाओ “, इस बात से सभी हंसने लगे और वातावरण खुशगवार हो गया। इस के बाद मैंने भी सोच लिया कि गाँव के मामलों के मुतलक मुझे कुछ नहीं पता था, इस लिए इन पार्टिओं से परहेज़ करूँ। लड्डे के साथ तो मेरा प्रेम बहुत था और वह भी मुझे नौकर के हाथ संदेशे भेजता रहता था। एक दिन सुबह को ही उन का एक नौकर आया और मुझे बोला कि साहब चाहते हैं कि रात को मैं खाना उन के घर खाऊं।
मैं अकेले ही उस रात को लड्डे के घर जा पहुंचा। वहां पहुँच कर देखा कि एक थानेदार वर्दी में कम्बल ओढ़े कुर्सी पर बैठा था और संतरा मार्का शराब की बोतल उस के सामने टेबल पर पडी थी, सौंफिया और संतरा मारका शराब का उन दिनों बहुत रिवाज़ था, यह शराब तब हमीरे में बनती थी। लड्डे ने उस से मेरा तुआरफ कराया कि मैं इंगलैंड से आया था। थानेदार ने उठ कर बड़े तपाक से मेरे साथ हाथ मिलाया और हम बातें करने लगे। लड्डे ने एक ग्लास में मुझे भी थोड़ी सी शराब डाल दी। लड्डे को मेरा पता था कि मैं ज़्यादा नहीं पीता था, इस लिए उस ने मुझे दिखा कर मेरी मर्ज़ी के मुताबिक ही डाली थी ।
जब लड्डा इंगलैंड से राणी पुर आया था तो उस को पता नहीं था कि उस के साथ रिश्तेदारों के लड़के किया करने वाले थे और यह बातें लड्डे ने मुझे बहुत पहले बता दी थीं और यह ही थानेदार था जिस ने लड्डे की बहुत मदद की थी। बातें उसी बात पर आ गईं और थानेदार बोल पड़ा कि देखो गुरमेल सिंह ! ” आप बाहर से ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आते हैं और यह घर के समबन्धी ही सिर्फ जैलिसी के कारण आप का नुक्सान करते हैं तो यह कहाँ का इन्साफ है, ऐसे लोगों से मैं बहुत नफरत करता हूँ और उन को सीधा कर देता हूँ ” . इस के बाद और बातें होने लगी और लड्डा अपना हारमोनियम ले आया, कुछ देर बाद वह थानेदार भी बजाने लगा। थानेदार हारमोनियम बहुत अच्छा बजाता था और उस ने एक गाना भी गाया और इस के बाद मैंने भी एक गाना सुनाया। देर रात तक हम बैठे रहे और आखर में मैं वापस आ गया।
अब यह बात भी मैं लिख दूँ कि इस थानेदार का सम्बन्ध लड्डे के साथ किओं था। जब लड्डा इंगलैंड से गाँव आया था तो एक दिन लड्डा गाँव में घूम रहा था कि उस के नज़दीकी सम्बन्धिओं के दो लड़के और उन के कुछ दोस्त इकठे हो कर आ गए और लड्डे को गालिआं देने लगे। लड्डे ने उन को ऐसा करने से रोका तो वह और भी तंग करने लगे। जब एक ने लड्डे को गन्दी गाली निकाली तो लड्डे ने इतने जोर से उस के मुंह पर पंच मारा कि वह घूमता घूमता कितनी दूर जा गिरा। लड्डा बहुत तगड़ा था और डर कर भागने वाला नहीं था। जब उस ने दूसरों को भी मुक्का दिखाया तो वह सभी चले गए। इस के कुछ दिन बाद लड्डे ने ट्रैक्टर की सर्विस के लिए ट्रैक्टर को फगवाड़े ले जाना था, तो एक दिन जब वह जा रहे थे तो उस का नौकर ट्रैक्टर चला रहा था और लड्डा पीछे पीछे मोटर साइकल पर जा रहा था।
उधर से कुछ लड़के आये और लड्डे की तरफ गोली चला दी, गोली मोटर बाइक के पहिए पर लगी और लड्डा बच गया। खेतों में काम कर रहे लोग आने लगे और वह लड़के भाग गए, कई लोगों ने लड़कों को पहचान लिया था। लड्डा पुलिस स्टेशन गया और वहां यही थानेदार था। यह थानेदार कुछ सिपाही ले कर आया, गवाह लिए और लड़कों की भाल शुरू कर दी। कुछ लडके पकड़ लिए गए। थानेदार ने अपनी एक यूनिफार्म लड्डे को दे दी थी । कुछ लड़कों को पुलिस ने ज़मीन पर लिटा लिया और पीटना शुरू कर दिया। थानेदार ने लड्डे को कहा कि वह भी जी भर कर इन को पीट ले। लड्डे ने मुझे बताया था कि उस ने एक लड़के के कान पर अपना बूट इतनी जोर से मारा था कि वह हमेशा के लिए बहरा हो गया था। अब गाँव में लड्डे का रोअब बहुत हो गया था।
उस रात को थानेदार के साथ मुलाकात के बाद मैं दो दफा इस को मिला था, एक दफा थाने में जब उस ने मुझे चोरों को पीटने वाला हंटर दिखाया था और दुसरी दफा जब मैं और लड्डा कपूर्थले किसी काम की वजह से गए थे। वहां उस ने हमारी बहुत आवभगत की थी। लड्डे ने एक बात और भी मुझे बताई थी कि पास के गाँव जगपाल पुर का एक बदमाश था, उस की गाये भैंसें उस का एक नौकर चराया करता था। एक दिन उस की गाये भैंसें लड्डे के खेतों में चली गई और बहुत नुक्सान कर दिया। जब लड्डे को इस बात का पता चला तो उस ने जा कर उस लड़के को पकड़ कर बहुत पीटा। लड़के ने जा कर अपने मालक को बताया तो वह राइफल ले कर लड्डे के घर उलाहना ले कर आ गया कि उस ने नौकर को क्यों पीटा था। लड्डा भी भीतर से राइफल ले कर आ गया कि एक तो उस के नौकर ने उस का खेत उजाड़ दिया, ऊपर से वे राइफल ले कर आ गया था । अब यह बदमाश नीचा हो गया। बहुत से लोग इकठे हो गए थे और लड्डे के हक्क में बोल रहे थे। इस घटना से भी लड्डे का दबदबा हो गया था। फिर लड्डे ने मुझे बताया था कि गाँव में रहना बहुत मुश्किल था। बहुत सालों बाद लड्डा वापस इंग्लैण्ड आ गया था और यह कहानी भी बहुत अजीब थी।
जिन कामों के लिए मैं आया था वह पूरे हो गए थे और अब संदीप भी तंग आ गया लगता था, इस लिए एक दिन मैंने अमृतसर जा कर सीट कन्फर्म करवा ली और कुछ दिनों बाद मैं संदीप और उसके नानाजी राजासांसी अमृतसर एअरपोर्ट जा पहुंचे और कुछ देर बाद हम बादलों के ऊपर उड़ रहे थे।
चलता. . . . . . .
नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपकी स्मरण शक्ति एवं प्रभावपूर्ण लेखन शैली का मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। सादर।
मनमोहन भाई , बहुत बहुत धन्यवाद , बस यह यादें ही हैं ,जब लिखना शुरू हो जाए तो यह दिमाग में आती ही रहती हैं ,मुझे खुद पता नहीं था की इतनी यादें दिमाग में आ जायेंगी .
मनमोहन भाई , बहुत बहुत धन्यवाद , बस यह यादें ही हैं ,जब लिखना शुरू हो जाए तो यह दिमाग में आती ही रहती हैं ,मुझे खुद पता नहीं था की इतनी यादें दिमाग में आ जायेंगी .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद। आपको लेखन एवं चिंतन का अच्छा अभ्यास हो गया। यह मीठे फल आपके पुरुषार्थ और तप की ही दें हैं। सादर।
बहुत रोचक संस्मरण भाईसाहब ! आपने अपने पुत्र को इंग्लैंड से लाकर भी अपना गाँव दिखा दिया यह बहुत अच्छा किया। मैं अभी तक अपने बच्चों को अपना गाँव नहीं दिखा पाया हूँ। इसका मुझे बहुत खेद है।
विजय भाई ,धन्यवाद . बहुत दफा हालात ही ऐसे हो जाते हैं की अपने गाँव के दर्शन हो नहीं पाते . अब यहाँ के रीटाएर हुए बहुत लोग इंडिया आते ही रहते हैं लेकिन अब हम नहीं जा सकते और शायेद अब मैं कभी जा ही नहीं सकूँगा, बस जब भाग्य में होगा तब आप भी जरुर बच्चों को कभी न कभी ले ही जायेंगे .
विजय भाई ,धन्यवाद . बहुत दफा हालात ही ऐसे हो जाते हैं की अपने गाँव के दर्शन हो नहीं पाते . अब यहाँ के रीटाएर हुए बहुत लोग इंडिया आते ही रहते हैं लेकिन अब हम नहीं जा सकते और शायेद अब मैं कभी जा ही नहीं सकूँगा, बस जब भाग्य में होगा तब आप भी जरुर बच्चों को कभी न कभी ले ही जायेंगे .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी यादों के दरीचे खुलते जा रहे हैं और नए-नए नज़ारे दिखला रहे हैं. एक और शानदार एपीसोड के लिए आभार.
लीला बहन ,धन्यवाद .बस भूली विसरी यादें ही हैं ,इन को एक जगह इकठी कर रहा हूँ ,जब यह किताब ख़तम हो जायेगी तो इन को कभी कभी पड़ के आनंद ले लेंगे .