गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : द्वेष ही संसार है

पीर को रख तू छुपा के जख्म ये बाज़ार है
जालिमों की बस्तियां औ द्वेष ही संसार है
झूठ का ओढ़े मुखौटा दर्द देते प्यार से
मशविरा देना यहाँ पर बाखुदा बेकार है
कौन किसका यार है औ कौन दुश्मन है यहां
साथ में हमदर्द के इक प्यार का हथियार है
एक थाली में परोसे द्वेष की वो रोटियाँ
साथ में रखते वही तो प्यार का अचार है
आदमी से आदमी का कोई रिश्ता ही नही
दौलतों के पलड़े में बिकता हुआ व्यवहार है
कागज़ी से फूल हैं वो जो कभी महकें नहीं
बेवज़ह आँखें भिगोना यार अत्याचार है
नब्ज़ को रखना पकड़ के मौत के आगोश तक
ज़िन्दगी के रासते में मिल न जाए हार है

गुंजन अग्रवाल “गूँज”

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*