लघुकथा

लघुकथा : ठुल्ले

पान की दुकान पर खड़े दो शिक्षकों की नज़र काफी देर से कड़ी धूप में ट्रैफिक चला रहे दो पुलिसवालों पर थी।

“यार इन ठुल्लों की जिंदगी भी क्या है? जहाँ दुनिया इस कड़ी दुपहरी में कहीं न कहीं छाँव में सुस्ता रही है, वहीं एक ये लोग हैं जो रोड पर अपनी ऐसी-तैसी करवा रहे हैं।” पहले शिक्षक ने पान की पीक थूकते हुए कहा।

दूसरे शिक्षक ने समर्थन किया, “तू ठीक कह रहा है। पर यार ये तो बता ये ठुल्ले का मतलब होता क्या है?”

“ठुल्ला यानि कि ठलुआ मतलब कि बिना काम-धाम का खाली इन्सान।” पहला खींसे निपोरते हुए बोला।

तभी स्कूल का चपरासी भागते हुए आया और उनसे बोला, “सर जी यहाँ आप दोनों इतनी देर से गप्पबाजी में लगे हुए हैं और वहाँ आपकी क्लास के बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचाकर आसमान सिर पर उठा रखा है। प्रिंसिपल साहब बहुत गुस्से में हैं।”

इतना सुनते ही वे दोनों स्कूल की ओर भाग लिए।

पानवाला पान पर चूना लगाते हुए एक पल को गर्मी का प्रकोप झेलते हुए ट्रैफिक चला रहे पुलिसवालों को देख रहा था और दूसरे पल पेड़ों की आड़ ले धूप से बचते-बचाते हुए स्कूल की ओर भाग रहे उन शिक्षकों को।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

सुमित प्रताप सिंह

मैं एक अदना सा लेखक हूँ और लिखना मेरा पैशन है। बाकी मेरे बारे में और कुछ जानना चाहते हैं तो http://www.sumitpratapsingh.com/ पर पधारिएगा।

2 thoughts on “लघुकथा : ठुल्ले

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    जग की रीत है …. दुसरे में कमियां सबको नजर आती है

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    जग की रीत है …. दुसरे में कमियां सबको नजर आती है

Comments are closed.