नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 8
नभाटा में अपने ब्लॉग पर लेख लिखते हुए उन पर आने वाली टिप्पणियों से मुझे पता चलता था कि अधिकांश लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बहुत सतही जानकारी है और कई बार तो वह भी गलत है. इसलिए मैंने संघ के बारे में लेखों की एक श्रृंखला लिखना तय किया. इन लेखों को अच्छा प्रत्युत्तर मिला. इनमें से कुछ का लिंक दे रहा हूँ.
संघ निर्माता डा. केशव बलीराम हेडगेवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की स्थापना: क्यों और कैसे
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
द्वितीय सरसंघचालक परमपूज्य श्री गुरुजी
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
संघ विचार परिवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की शाखा में क्या होता है?
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इन सभी लेखों पर बड़ी संख्या में टिप्पणियाँ आई थीं, जिनमें से अधिकांश समर्थन में थीं और कुछ विरोध में भी थीं जिनका मैंने उचित उत्तर दिया.
मैंने संघ के बारे में बहुत से भ्रमों का निराकरण करने का प्रयास किया था. जिसमें में सफल रहा.
वैसे बीच बीच में मैं अन्य सामयिक और सामाजिक विषयों पर भी लिखता रहता था.
— विजय कुमार सिंघल
वैशाख शुक्ल 9, सं. 2073 वि.
नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। मेरा और आर्यसमाज के हमारे सभी विद्वानों का मानना है कि आर आर एस का दृष्टि कोण महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के प्रति पूर्वाग्रहों से युक्त है और पौराणिक रूढ़िवादी मान्यताओं से भरा हुआ है। आर्यसमाज को उनकी विचारधारा से तो नहीं परन्तु उनके संगठन से खतरा हो सकता है। संघ ने स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानंद जी की विचारधारा का बिना तुलनात्मक अध्ययन किये स्वामी दयानन्द की जानबूझ कर अवहेलना व उपेक्षा की है, ऐसा आर्यसमाज को लगता है व माना जाता है। इसका संतोषजनक उत्तर हमें किसी से नहीं मिला। फिर भी देश हित को सर्वोपरि रखते हुवे आर्यसमाज के ९० प्रतिशत लोग बीजेपी के समर्थक हैं। सादर।
मान्यवर, आपका यह कहना तो सही है कि संघ के ९० प्रतिशत लोग पौराणिक हैं। समाज में जो स्थिति है लगभग वैसी ही संघ में है। वास्तव में संघ में सभी को अपनी अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार धार्मिक होने और पूजा-पाठ करने या न करने की छूट है। इस बारे में किसी का कोई आग्रह नहीं है। संघ एक सामाजिक संगठन है धार्मिक नहीं।
लेकिन यह बात सही नहीं है कि संघ स्वामी दयानंद की उपेक्षा करता है। संघ के प्रात: स्मरण में ऋषिवर का नाम सम्मिलित है और उनको हमेशा याद किया जाता है। आपको बता दूँ कि संघ में हर नगर, तहसील और शाखा का नाम किसी महापुरुष के नाम पर रखने की परम्परा है। कई के स्वामी दयानंद जी नाम पर है। कानपुर में हमारे नगर का नाम दयानन्द नगर ही था। इसका उल्लेख मैंने अपनी आत्मकथा में भी किया है।
आप किस ख़तरे की बात कर रहे हैं? संघ से किसी भी देशभक्त संगठन को कोई ख़तरा नहीं है। देशद्रोहियों को जरूर संघ से ख़तरा है और होना चाहिए। आर्यसमाज तो महान देशभक्तों का संगठन है। संघ के बड़े बड़े अधिकारी उनके कार्यक्रमों में साधारण दर्शक की तरह भाग लेते हैं ऐसा मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है। इसलिए इस बारे में आपकी जो आशंकायें हैं उन्हें दूर कर लीजिए।
सादर !
नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। मेरा और आर्यसमाज के हमारे सभी विद्वानों का मानना है कि आर आर एस का दृष्टि कोण महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के प्रति पूर्वाग्रहों से युक्त है और पौराणिक रूढ़िवादी मान्यताओं से भरा हुआ है। आर्यसमाज को उनकी विचारधारा से तो नहीं परन्तु उनके संगठन से खतरा हो सकता है। संघ ने स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानंद जी की विचारधारा का बिना तुलनात्मक अध्ययन किये स्वामी दयानन्द की जानबूझ कर अवहेलना व उपेक्षा की है, ऐसा आर्यसमाज को लगता है व माना जाता है। इसका संतोषजनक उत्तर हमें किसी से नहीं मिला। फिर भी देश हित को सर्वोपरि रखते हुवे आर्यसमाज के ९० प्रतिशत लोग बीजेपी के समर्थक हैं। सादर।