स्वास्थ्य

अंकुरित अन्न

कई प्राकृतिक चिकित्सक इसे ‘अमृतान्न’ कहते हैं। हम इसे भोजन का अंग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भोजन भी बना सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो, तो इसे नाश्ते के रूप में सेवन करना बहुत अच्छा रहेगा। यह पकाये हुए अन्न से अधिक लाभदायक होता है और पचने में अत्यन्त हलका होता है।

अन्न को अंकुरित करने की विधि बहुत सरल है। साबुत अनाजों जैसे चना, गेहूँ, मूँग, उड़द, मैथी दाने आदि को आवश्यक मात्रा में लेकर साफ कर लें और एक दो बार साफ पानी में धो लें। अब इनको किसी कटोरे में रखकर पानी में भिगो दें। 10-12 घंटे भिगोये रखने के बाद उनको किसी कपड़े में लपेटकर उसी कटोरे में रख दें और पानी निकाल दें। कटोरे को अच्छी तरह ढक दें।

ऐसा करने से 24 घंटों या अधिक से अधिक 48 घंटों में उनमें अंकुर निकल आयेंगे। उनको एक बार और धोकर खायें। चाहें तो थोड़ा सैंधा नमक और नीबू भी डाल सकते हैं। स्वाद बढ़ाने के लिए आप उसमें धनिया, टमाटर, प्याज, अदरक और हरी मिर्च के टुकड़े और रातभर भिगोये हुए मूँगफली के दाने मिला सकते हैं।

अंकुरित अन्न खाने से हमारे शरीर के लिए आवश्यक सभी विटामिनों और खनिज पदार्थों की पूर्ति हो जाती है। यह पाचन प्रणाली को सुधारने के लिए भी बहुत लाभदायक है, क्योंकि इन्हें पचाने में शरीर को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत आग पर पकाये हुए अन्न को पचाने में आँतों पर बहुत दबाव पड़ता है।

आप चाहें तो पूर्णतः कच्चा खाने अर्थात् आग के सम्पर्क में न आयी हुई वस्तुओं को ही ग्रहण करने का व्रत ले सकते हैं। इसे अपक्वाहार कहा जाता है। अपक्वाहार पुराने और हठी रोगों से मुक्ति प्राप्त करने में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है। यदि हम अपने आहार में अन्न और फलों का पर्याप्त अनुपात बनाये रखें और मूँगफली के दानों के रूप में चिकनाई भी लेते रहें, तो अपक्वाहार से किसी भी प्रकार की हानि होने की कोई सम्भावना नहीं है।

विजय कुमार सिंघल

वैशाख शु. ११, सं. २०७३ वि.

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

5 thoughts on “अंकुरित अन्न

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, स्वास्थ्य विषयक जानकारी अति उत्तम लगी.

  • Man Mohan Kumar Arya

    अति उत्तम स्वास्थ्य विषयक जानकारी जो सभी के लिए लाभकारी है। सादर।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, मान्यवर !

  • विजय भाई , सवास्थ सम्बन्धी यह अन्कृत दालों का सरल ढंग बहुत अच्छा लगा . हम भी कभी कभी सुपर स्टोर से ले आते हैं और खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होती हैं .यहाँ स्टोरों में अछि किसम की मिल जाती हैं .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाईसाहब ! यहाँ भारत में अंकुरित अन्न मिलना बहुत कठिन होता है। इसलिए मैं स्वयं ही अंकुरित कर लेता हूँ। कानपुर में अंकुरित अन्न सरलता से मिल जाता था। यहाँ नवी मुम्बई में भी कई लोग बेचते हैं। पर आगरा लखनऊ वाराणसी पंचकूला में यह दुर्लभ था।

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