कविता : रंग बदलते मैँने देखे
अजब गजब सारी दुनिया के
रंग बदलते मैँने देखे ।
ज़र्रे ऊपर उठते देखे ,
गिरते यहाँ मसीहा देखे ।।
दौलत की भूखी आँखेँ थीँ ,
रिश्तोँ की झूठी फितरत थी ।
मुस्कानेँ कुछ लोग खरीदेँ ,
बिकते बेबस आँसू देखे ।।
बँगलोँ मेँ बह रहे समन्दर ,
बाहर कितने प्यासे देखे ।
हँसते यहाँ दरिंदे देखे ,
कुछ मजबूर रुँआसे देखे ।।
कूकुर खाते बिस्कुट देखे ,
बीनेँ कचरा बच्चे देखे ।
झूठे लोग मलाई खाते ,
भूखे मरते सच्चे देखे ।।
अजब गजब सारी दुनिया के ,
रंग बदलते मैँने देखे ।।
-ज्योत्सना सिंह
यथार्थ को उद्घाटित करती सुन्दर कविता