धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

धैर्य से सबको धर्म का रहस्य सिखा दिया

स्वामी दयानंद के अनुयायियों की संख्या अच्छी-खासी थी। जो भी उनकी शरण में आता, उनकी सादगी, साफगोई और सचाई से प्रभावित होकर उनका अनुगामी बन जाता था। स्वामी जी अपने सभी अनुयायियों को समान नजर से देखते थे। किंतु उनके कुछ अमीर व सवर्ण वर्ग के अनुयायी यह बात पसंद नहीं करते थे कि वे अशक्त व गरीब तबके के अनुयायियों के साथ भी उनके जैसा ही व्यवहार करें। वे समय-समय पर दयानंद को टोकते भी थे, किंतु स्वामी जी इस मामले में किसी की परवाह नहीं करते थे।

एक बार एक जूते गांठने वाले ने उन्हें अपने घर खाने पर आमंत्रित किया। स्वामी जी ने उसका आमंत्रण बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया और निश्चित दिन वह जूते गांठने वाले के घर भोजन करने पहुंच गए। वह उन्हें अपने घर आया देखकर खुशी से फूला न समाया और उसने अपनी सार्मथ्य के अनुसार भोजन उनके आगे परोस दिया। स्वामी जी प्रसन्नतापूर्वक भोजन करने लगे। जब यह बात उनके कुछ अमीर व सवर्ण अनुयायियों तक पहुंची तो वे तुरंत उस जूते गांठने वाले के घर पहुंच गए।

वहां स्वामी जी को भोजन करते देख वे बोले, ‘स्वामी जी, यह क्या! आप जूते गांठने वाले की रोटी…।’ अपने अनुयायी की बात पूरी होने से पहले ही स्वामी जी मुस्कुराकर बोले, ‘अरे भाई, ध्यान से देखो मैं जूते गांठने वाले की रोटी नहीं, गेहूं की रोटी खा रहा हूं। आप सब जानते हैं कि मैं प्रत्येक मनुष्य को एक नजर से देखता हूं। मुझे किसी तरह का भेदभाव मंजूर नहीं।’ यह सुनते ही उन सभी अनुयायियों की नजरें झुक गईं और वे अपने व्यवहार पर अत्यंत शर्मिन्दा हुए। इसके बाद उन अनुयायियों ने भी बड़े प्रेम से जूते गांठने वाले के घर भोजन किया और हमेशा के लिए अपने मन से भेदभाव की दीवार को हटा दिया।

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

12 thoughts on “धैर्य से सबको धर्म का रहस्य सिखा दिया

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रेरणाप्रद कथा, बहिन जी.

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। आपने अपने हृदय से इस लेख को तैयार किया है जिससे यह प्राणवान हो उठा है। इसे पढ़कर प्रसन्नता व तृप्ति हुई। आपका परिश्रम सफल हुआ है। मैं आपका जितना भी धन्यवाद करूं, कम होगा। एक बार भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जी ने शायद कहा था कि मैं दयानन्द जी की पुत्री हूं। यदि वह न आते तो मैं आज प्रधानमंत्री न बनती। ऐसा ही आर्यसमाज में सभी विदुषी बहिने भी मानती हैं। ऐसा इसलिये कि यदि स्वामी दयानन्द न आते और वह अज्ञान व अन्धविश्वास दूर न करते तो हमारी बहिनों व माताओं के जीवन में सुधार न होता। आपने पढ़ा ही होगा कि ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी’, प्रश्न-नरकस्य किम् द्वारम्। उत्तर- नारी और यदि कोई नारी या शूद्र वेद मन्त्र सुन ले तो उसके कान में पिघला हुआ कांच डाल दिया जाये और यदि वह दोनों जिह्वा से वेद मन्त्र का उच्चारण करने का प्रयास करें तो उनकी जिह्वा ही काट दी जाये। यह हमारे धार्मिक महापुरुषों व शास्त्रों के वचन हैं। स्वामी दयानन्द जी के समय में समाज में बाल विवाह होते थे, बहनें बचपन में ही विधवा हो जाती थी और फिर उनकी जो दुगर्ति होती थी, उसका उल्लेख करने से ही हृदय भर आता है। उन दिनों बेमेल विवाह भी होते थे जिसमें नारी एक बच्ची और उसका पति बूढ़ा होता था। सती प्रथा भी समाज में विद्यमान थी। इन सब अज्ञानता और मूर्खता पूर्ण परम्पराओं व रीति-रिवाजों को महर्षि दयानन्द ने सशक्त खण्डन कर देश व समाज से दूर किया। अस्तु। अतः आपने आज ऋषि दयानन्द का कुछ ऋण चुकता कर दिया जिसके लिए आप आर्यसमाज की ओर से बधाई की पात्र हैं। आदरणीय बहिन जी लेख में दो तथ्यगत भूले हैं। यहां जूता गांठने वाले की जगह बाल काटने वाला नाई और भोजन का स्थान उसका घर न होकर स्वामी दयानन्द की नगर से दूर एकान्त स्थान की कुटिया थी। सहृदयता एवं हृदय के आदर भाव से निवेदन है। यदि इससे आपको किंचित बुरा लगता है तो यह मेरे लिए अत्यन्त दुःखद होगा। सादर नमस्ते एवं धन्यवाद।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, महर्षि दयानन्द सरस्वती की महिमा अपरंपार है. धैर्य की महिमा पर लिखे गए प्रेरक प्रसंग पर अधैर्य का क्या काम! अति उत्तम व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

      • Man Mohan Kumar Arya

        हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।

    • विजय कुमार सिंघल

      मान्यवर, कहानी में आपने तथ्यगत भूलों की ओर सही ध्यान दिलाया है. स्वामी जी के लिए भोजन लाने वाला वह व्यक्ति साध (नाई) था.
      आपने इंदिरा गाँधी द्वारा स्वामी जी के विषय में जो कहने की बात लिखी है, वह मीठी होते हुए भी काल्पनिक है. इंदिरा ने ऐसी कोई बात कभी नहीं कही. बाबर की कब्र पर सिर झुकाकर देर तक खड़ी रहने वाली वह औरत आर्य समाज के विषय में ऐसी धारणा नहीं रख सकती. किसी चापलूस ने इसको प्रचारित किया होगा. आर्य समाज में कांग्रेसी तत्वों की संख्या कम नहीं थी या है.
      आपके शेष विचारों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.

      • Man Mohan Kumar Arya

        हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। श्रीमती इंदिराजी विषयक यह बात मैंने स्मृति के आधार पर लिखी थी। ऋषि दयानन्द की निर्वाण शताब्दी अजमेर में अक्टूबर १९८३ में आयोजित की गई थी। इस समारोह में श्री मति इंदिरा गांधी जी मुख्य अथिति थी। मैंने इनके भाषण में इसे ढूंढने का प्रयास किया परन्तु यह उल्लेख नहीं मिला। एक बार इंदिराजी पंडित प्रकाशवीर शास्त्री जी के साथ आर्यसमाज दीवानहाल दिली में भी आई थी और वहां यज्ञ किया था। वह चित्र मैंने किसी पुस्तक या पत्रिकाओं में देखा है। वहां पंडित प्रकाशवीर जी और श्रीमती गांधी के सम्बोधन हुवे थे। इसका रिकार्ड मिल नहीं सका। टिपण्णी में इंदिराजी विषयक बात मुझे अपनी भूल लग रही है। वर्तमान व भविष्य के लिए अपना सुधार कर लिया। है सादर धन्यवाद। राजनितिक लोगो की बातें वा कार्य अधिकांशतः अपने स्वार्थों से ही किये जाते है। बाबर की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े रहना किसी स्वार्थ का ही परिचायक प्रतीत होता है। सादर।

  • अर्जुन सिंह नेगी

    प्रेरणादायक दृष्टान्त, हमें सही मायनो में संतो को ही नही बल्कि उनकी शिक्षाओं को भी अपनाना चाहिए

    • लीला तिवानी

      प्रिय अर्जुन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अमल करने पर ही लाभ होगा. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • लीला बहन , महान आत्माओं का हम सत्कार तो करते हैं लेकिन उन का कहा नहीं मानते . गुरु नानक देव जी ने भी मलिक भागो के छतीस परकार के भोजन छोड़ कर एक गरीब भाई लालो के घर की रुखी मिस्सी रोटी खाई थी .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, सभी महान संतों का ऐसा ही व्यवहार होता है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • नीतू सिंह

    सही है….सभी महान आत्माओं ने धरती पर सदभाव का ही पाठ पढ़ाया है।

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी नीतू जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है.

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