कविता : जब भी तेरी यादों का
जब भी तेरी यादों का
झोंका चला आता है,
सुकून ओ करीने से ,
संवरी ज़िन्दगी में,
सब कुछ बिखेर जाता है,
समेटती रह जाती हूँ मैं ,
तिनके -तिनके ,
जो रखे थे सहेजकर,
फिर कितने ही दिनों की ,
मशक्कत की
सज़ा दे जाता है ,
कभी खूबसूरत यादों के ,
बहाव में,डूबती-उतराती मैं ,
तो कभी टूटे ख्वाबों की ,
किरचें सम्हालती मैं ,
अपने ही ज़ख़्मी दिल को ,
हौले से सम्हालती मैं ,
मिल जाए कोई मरहम ,
शिद्दत से तलाशती मैं ,
बस करो अब मुझको ,
यूं सताओ न ऐ ” सना ”
भूल जाओ पता मेरा ,
न आओ अब यहाँ ।
— ज्योत्सना
सुन्दर रचना!
Wah ! Behd khoobsurat likha hai