कविता

कविता : माँ

=========माँ ========

कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते – चढ़ते
आज बहुत “बड़े” हैं हो गये !!
बैठे माँ की निश्छल छाया में
न जाने, कितने बरस हैं हो गये !!

ईश्वर का वरदान है तू
मेरी जननी ! मेरा अभिमान है तू !
तेरे चरणों में सारी दुनिया
मेरा स्वर्ग, मेरे चारों धाम है तू !!

रहे सलामत हरदम तू माँ
कैसे तेरा कर्ज चुकाऊँ माँ !
एे जननी ! तू मेरी पूजा हो
तुझमें मैं रब को पाऊँ माँ !!

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed

2 thoughts on “कविता : माँ

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    भाव को सलाम

  • अर्जुन सिंह नेगी

    बहन अंजू जी सुन्दर भाव ! मुझे लगता है की इस कविता को और परिष्कृत किया जाना चाहिए, आपके अधिकार क्षेत्र पर टिपण्णी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

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