दहकती दिल्ली में जल-सेवा
”मौसम के हैं अद्भुत रंग, अनोखे ढंग,
कहीं सर्दी से ठिठुरकर व्याकुल हो रहे हैं लोग,
कहीं आसमान से बरस रही आग से बेकल हैं अंग-अंग.”
आजकल भारत में पिछले कई दिनों से आसमान से आग बरस रही है. संपूर्ण उत्तर भारत गर्मी की चपेट में है. राजस्थान के फलोदी में सबसे ज़्यादा तापमान 51 डिग्री दर्ज़ किया गया. यहां तक की गर्मी की मार से जम्मू-कश्मीर का पुंछ भी अछूता नहीं है. गुजरात के वलसाड में गर्मी के कारण सड़क पिघल गई है, पैदल चलने वाले चप्पल-जूतों में तारकोल चिपकने से चलने में परेशान हैं. ऐसे में लोगों को थोड़ी भी राहत मिल जाए, तो उनके कुम्हलाए चेहरों पर रौनक आ जाती है और मदद करने वालों के लिए मन से निकलती हैं ढेरों दुआएं. दहकती दिल्ली में राहत पहुंचाने का पुण्य कार्य कर रहे हैं सचिन और श्रीधर. सचिन और श्रीधर पुलिसवाले हैं. पुश्ता रोड पर बने फुटओवर ब्रिज के पास गांधी नगर थाने में तैनात सचिन और श्रीधर की पिकेट ड्यूटी रहती है.
सचिन और श्रीधर ने गुरुवार को पुश्ता रोड पर ठंडे पानी की थैलियां बांटी. पुलिस को इस नए रोल में देखकर वहां से गुजर रहे लोग भी इसकी तारीफ करते दिखे. दिल्ली पुलिस के सीनियर अफसरों ने भी लोकल पुलिस के इस काम की तारीफ की. दोनों सिपाही बाल्टी में पानी की थैलियां लेकर लोगों को दौड़-दौड़कर पीने के लिए ये थैलियां दे रहे थे. स्टैंड पर आरटीवी और ऑटो को रुकवाकर उनके अंदर बैठी सवारियों को जब सिपाहियों ने पानी की थैलियां दीं, तो लोगों का कहना था कि पहली बार पुलिस का यह रूप भी देखने को मिला. पुश्ता रोड से गुजरने वाली गाड़ियों में बैठे लोगों ने, जब पुलिसवालों को इस तेज गर्मी में लोगों की इस तरह से सेवा करते देखा तो उनके हाथ सैल्यूट मारने के लिए उठ गए.
सिपाही सचिन ने बताया कि गांधी नगर मार्केट के एक दुकानदार भी अक्सर इसी तरह से लोगों की सेवा करते हैं. गुरुवार को उन्होंने यह काम उनके हाथों से कराया. उन्होंने बताया कि शाम 4 बजे तक उन्होंने 6 हजार के करीब पानी की थैलियां बांटीं. उन्होंने पानी की थैलियां खरीदने के लिए भी दुकानदार को अपनी जेब से सहयोग दिया. उनका कहना था- ”गर्मी में उनके हाथ से पानी पीने के बाद लोगों को तो अच्छा लगा ही होगा, उन्हें भी बहुत सुकून मिला.”
सचिन और श्रीधर जी, आपकी इस जल-सेवा ने हमें हमारे राजस्थान के बचपन में पहुंचा दिया, जब गर्मियों में जगह-जगह प्याऊ लगे होते थे. अक्सर बुज़ुर्ग लोग यह सेवा करते थे. ठंडे पानी के बड़े-बड़े घड़े रखे होते थे. कोई सज्जन अपने घर के बाहर यह प्याऊ लगा लेते थे. घर की गृहिणियां और बच्चे घड़ों में निरंतर पानी भरते रहते थे, ताकि यह जल-सेवा निरंतर चलती रहे. जिस घड़े में से पानी पिलाया जाता था, उसके अलावा बाकी घड़ों पर मुलायम कपड़ा बांधकर रखा जाता था, ताकि उनका पानी जल्दी ठंडा हो और अधिक देर तक ठंडा रहे. 20-25 साल पहले तक दिल्ली में भी पानी के घड़े देखे जा सकते थे. आपने हमें सिखाया है, कि हम भी ऐसा ही कुछ प्रयास कर सकते हैं. आपकी इस जल-सेवा के प्रयास को हमारे कोटिशः प्रणाम.
जल सेवा दे रहे दोनों सिपाही धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के पात्र हैं. यह मनुष्यता व मानव धर्म है। गर्मियों में मनुष्यों सहित पक्षी व पशु भी जल से त्रस्त रहते हैं। यदि लोग एक खुले मुंह के बर्तन में अपनी छतों पर पानी भर कर रख दें तो यह भी पक्षियों के प्रति सराहनीय जल सेवा हो सकती है। सदर धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सेवा मनुष्यता व मानव धर्म है, जल सेवा मनुष्यता व मानव महाधर्म है. देश-विदेश में बहुत-से लोग पशु-पक्षियों के लिए अन्न-जल सेवा का प्रबंध रखते हैं. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.