श्रृंगार
आज के विषय पर लावणी छन्द पर आधारित मेरा प्रयास
कैसे भाए चूडी कंगन अरू माथे की बिंदीया ।
बिन साजन में तडपू ऐसे जैसे पिंजडे में चिडिया ।
याद तुम्हें जब मैं करती वो हिचकी आती तो होगी ।
अश्रु संग बहती कजरे की धार बुलाती तो होगी ।
हार गले का ऐसे लगता जैसे फांसी का फंदा ।
किस्मत ने दूर किया हमको खेला खेल बडा गन्दा ।
जब जब तेरी नजर पडे तो चमके ये मेरा टीका ।
लेकिन तुम जो साथ नहीं तो है जीवन मेरा फीका ।
पैरों में बजती पायल इस दिल में आग लगाती है ।
तुम संग बीते हैं जो पल उनकी झनकार सुनाती है ।
अनुपमा दीक्षित मयंक