सच्चाई को ख़ार मिल रहे…
सच्चाई को ख़ार मिल रहे, झूठ के दामन फूल, ज़माना बदल गया।
झूठ हो रहा महिमा मंडित सत्य फांकता धूल, जमाना बदल गया॥
छल और धोखा जीत रहा नित, रीति नीति लाचार हुई।
झूठ के सर पर ताज सज रहा, सत्य साधना तार हुई॥
जीत रहा पाखंड ढोंग अब, हारे धर्म उसूल, ज़माना बदल गया…
रिश्ते नाते हुए गौण हो गये, दौलत सबसे बडी हुई।
संस्कृति सब भूल रहे, मर्यादा पग में पडी हुई॥
अन्याय फूलता फलता है, और न्याय हुआ निर्मूल, ज़माना बदल गया….
संत हो गये व्याभिचारी, कुछ व्यापारी बन बैठे।
नेता सेवक नही रहे अब, अत्याचारी बन बैठे॥
देशभक्ति की परिभाषा की, नफ़रत हो गयी मूल, ज़माना बदल गया….
दुष्ट भेडिये धार रहे हैं, अब भेडों का भेष यहां।
राजनीति में बचा नही कुछ, नीति जैसा शेष यहां॥
कुंठित शाशक उडा रहे हैं, महापुरुषों पर धूल, ज़माना बदल गया….
मानवता मर मर जीती है, धर्म बना आतंक का रक्षक।
मर्यादा पालक ही बन गये, देखो मर्यादा के भक्षक॥
बिन सोचे बिन समझे, कहते कुछ भी ऊल जूलूल, ज़माना बदल गया…..
सतीश बंसल