हर बार परीक्षा नारी क्यों दे
हर बार परीक्षा नारी क्यों दे, क्यों हर बार छली जाए ।
नित रोज नया रावण आकर सीता को क्यों हर जाए ।
क्यों खोया अस्तित्व जहा में , बनी खिलौना माटी सा।
नही मिला अधिकार इसे क्यों, आजाद जहाँ में जीने का?
लाज शरम अरु मर्यादा बस, नारी के हिस्से आए?
देख कहानी अत्याचारी कैसे अब चुप रह पाए?
अब समय आ चुका है ऐसा हथियार उठाने ही होगें।
माँ काली दुर्गा बाले सब पाठ पढाने ही होगें।
एक अकेले से क्या होगा ऐसी सोच नहीं रखना ।
लेकर दृढ संकल्प हृदय मे, सत पथ पर आगे बढना।
इतिहास नहीं बनना नारी को नित नई कहानी अब होगी।
अबला से सबला बन जाओ, हर राह सुहानी तब होगी।
अनुपमा दीक्षित मयंक