ग़ज़ल
इश्क में कब किसी कि चलती है,
दिल सम्हालो, नज़र मचलती है।
तेरे जाने से दम निकलता है,
तेरे आने से जाँ सम्हलती है।
तुझको देखा तो ये कहा दिल ने,
तेरी सूरत किसी से मिलती है।
बात जब भी जफा की उठती है,
तेरी जानिब को जा निकलती है।
ये इबादत के वक्त तलबे – मय !
तिश्नगी करवटें बदलती है।
और हासिल है क्या ख़यालों से,
बस, तबीयत ज़रा. बहलती है।
दिल लिया, ‘होश’ ले गया दिलबर,
फिर भी हसरत नहीं निकलती है।
होश साहब आपकी रचना पड़कर मेरे होश उड़ गए, बहुत खूब , आपका परिचय पढ़ कर तो बेहोश ही हो गया! आप बड़े खुशमिजाज़ लगते ho