गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : सफर – घर से मरघट तक

आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ, आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ .
माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा, कान मेरे ये दोनों क्यों बहरे हुए.

उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा, दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.
आग होती है क्या आज मालूम चला, जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.

शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ, आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..

जिस समय जिस्म का पूरा जलना हुआ, उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने, मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए

— मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: [email protected] ,[email protected]