प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ बलराज मधोक के पिता श्री जगन्नाथ जी का आर्यसमाज विषयक प्रेरणादायक संस्मरण
ओ३म्
आर्यजगत के उच्च कोटि के विद्वान व ऋषिभक्त पंडित इन्द्रजित् देव, यमुनानगर के गुरुकुल पौंधा देहरादून के उत्सव के अवसर पर दर्शन करने और उनसे वार्तालाप करने का हमें सुअवसर मिला। उन्होंने आर्यसमाजी विचारधारा के संवाहक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ प्रोफेसर बलराज मधोक के पिता श्री जगन्नाथ जी का एक संस्करण सुनाया जिसे हम अपने सभी प्रिय मित्रों व बन्धुओं से साझा कर रहे हैं।
प्रोफेसर बलराज मधोक के पिता का नाम श्री जगन्नाथ था। आप क्षत्रिय वर्ण के थे। आप आर्यसमाज, हजूरीबाग, श्रीनगर, कश्मीर के मंत्री रहे। देश की आजादी से पूर्व जिन दिनों आप युवा थे, आपने नौकरी के लिए डाकतार विभाग में इंस्पैक्टर के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। इस पद की लिखित परीक्षा में आप सफल हो गये थे और अब एक साक्षात्कार के बाद सफल होने पर आपको यह पद मिलना था। आपको साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। आपका साक्षात्कार एक अंग्रेज अधिकारी ने लिया। साक्षात्कार में उसने आप से पूछा कि आप किस महापुरूष और ग्रन्थ को अपना आदर्श मानते हैं और आपकी विचारधारा क्या है? श्री जगन्नाथ जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मैं ऋषि दयानन्द जी और उनके ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को मानता हूं और मेरी विचारधारा आर्यसमाजी है।
आपका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज अधिकारी ने सर्वथा योग्य होते हुए भी आपका चयन नहीं किया। कारण आपको अंग्रेज अधिकारी के व्यवहार से ज्ञात हो चुका था। यह कारण आपका ऋषि दयानन्द का अनुयायी होना और सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन करना था। कारण का ज्ञान होने पर श्री जगन्नाथ जी ने निर्णय किया कि उन्हें जीवन में सरकारी नौकरी नहीं करनी है। यह संस्मरण श्री बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा में दिया है। हम आशा करते हैं कि आर्यसमाज के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले श्री जगन्नाथ जी को आर्यसमाजी बन्धु सादर श्रद्धापूर्वक स्मरण करेगें और इस प्रभावपूर्ण घटना का प्रचार करेंगे। हमें ऋषिभक्ति एवं त्याग की यह एक आदर्श घटना लगती है। इसके लिए श्री इन्द्रजित देव जी का हार्दिक धन्यवाद करते हैं।
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–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, त्याग का अति सुंदर प्रेरक प्रसंग हमारे साथ साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। आपने लेख को पसंद किया इससे प्रसन्नता हुई। कृपा बनाए रक्खें। सादर।