धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द और स्वामी अच्युतानन्द जी के मध्य शास्त्रार्थ का एक प्रेरणादायक संस्मरण

ओ३म्

पं. सत्यपाल पथिक, प्रसिद्ध आर्य गीतकार एवं भजनोपदेशक ने गुरुकुल पौंधा देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के अवसर पर कल दिनांक 4 जून, 2016 को हमें महर्षि दयानन्द जी के जीवन का एक प्रेरणादायक संस्मरण सुनाया। उन्होंने बताया कि यह संस्मरण पं. चमूपति जी ने आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के इतिहास में दिया है। यह ग्रन्थ पंडित सत्यपाल पथिक जी के पास है और घटना पूर्णतः प्रमाणिक है। अपने मित्रों के लिए हितकर एवं लाभकारी जानकर हम इसे प्रस्तुत कर रहे हैं।

 

एक दिन पं. चमूपति जी ऋषि दयानन्द कु अनुयायी स्वामी अच्युतानन्द जी के पास बैठे थे। दोनों पंजाब की प्रतिनिधि सभा के उपदेशक थे। चमूपति जी ने स्वामी अच्युतानन्द जी ने इस अवसर पर पूछा कि मैंने सुना है कि आपका मेरे आचार्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के साथ शास्त्रार्थ हुआ था? स्वामी जी बहुत धीरे से बोले कि हां हुआ तो था। पंडित चमूपति जी ने पूछा कि शास्त्रार्थ में क्या बातें हुई थीं? इस पर स्वामी जी मौन रहे। पंडित चमूपति जी ने पुनः निवेदन किया कि कृपया अपने मुखारविन्द से शास्त्रार्थ का वह दृश्य सुनायें। इस पर स्वामी जी बोले कि अच्छा सुनाता हूं। पं. सत्यपाल पथिक जी ने बताया कि इस शास्त्रार्थ का स्थान मेरी स्मृति में नहीं आ रहा है। स्वामी अच्युतानन्द जी ने पंडित चमूपति जी से कहा कि शास्त्रार्थ की तिथि, समय व स्थान का निर्धारण हो गया। उस समय स्वामी अच्युतानन्द जी एक पौराणिक महामण्डलेश्वर थे। उनके सैकड़ो शिष्य, सुख सुविधायें व ठाठ-बाट थे। ़ऋषि दयानन्द से शास्त्रार्थ करने के लिए स्वामी अच्युतानन्द जी के साथ उनके सैकड़ो चेले-चेलियां चलीं। स्वामी अच्युतानन्द जी शास्त्रार्थ चलने के लिए तैयार हुए। उनके रथ को भी फूल-मालाओं आदि से तैयार किया गया। स्वामी अच्युतानन्द जी के शास्त्रार्थ स्थल पर जाने का यह दृष्य एक जुलुस के रूप में था। उनकी सहायता के लिए संस्कृत जानने वाले अनेकों पण्डित थे। स्वामी जी इस प्रकार ढोल बाजे के साथ शास्त्रार्थ स्थल पर पहुंचें।

 

प्ं. चमूपति जी ने स्वामी अच्युतानन्द जी से पूछा कि आपके साथ इतने विद्वान अनुयायी थे। मेरे ऋषि के साथ कितने लोग थे? इस पर स्वामी जी ने भावुक हो कर कहा कि अरे चमूपति ! तूने यह क्या पूछ लिया। शास्त्रार्थ की घटना को याद कर स्वामी अच्युतानन्द जी की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। कहा कि मेरे साथ तो मेरे सैकड़ों अनुयायी थे परन्तु ऋषि दयानन्द जी के साथ परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं था।

 

ऋषि दयानन्द के जीवन की यह घटना उनके प्रति हमारी श्रद्धा में वृद्धि करती है। ऋषि दयानन्द कोई साधारण मनुष्य नहीं अपितु एक महर्षि, देवता वा फरिश्ता थे जो वैदिक धर्म व संस्कृति की रक्षा, इसे उद्धार व आर्यों की रक्षा व उन्नति के लिए इस धरा धाम पर आये थे।

 

‘धन्य है तुमको हे ऋषि तूने हमें बचा लिया।

सो सो के लुट रहे थे हम तुन्हें हमें बचा लिया।।’

 

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “ऋषि दयानन्द और स्वामी अच्युतानन्द जी के मध्य शास्त्रार्थ का एक प्रेरणादायक संस्मरण

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, सच है हमारे साथ परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं होता. उसी का साथ चाहिए.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। आपके यह विचार माननीय एवं प्रशंसनीय है। सादर।

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