व्यापार में सत्य व वचनबद्धता का ग्राहक पर आशातीत प्रभाव का एक प्रेरक उदाहरण
ओ३म्
हम एक प्रेरक ऐतिहासिक प्रसंग प्रस्तुत कर रहे हैं जो आर्यों के सात्विक व्यवहार का अच्छा उदाहरण है। यह प्रसंग हमें आज आर्य विद्वान श्री इन्द्रजित् देव, यमुनानगर ने सुनाया है।
आर्यसमाज होशियारपुर (पंजाब) के प्रधान श्री तोता राम जी होशियारपुर में एक कपड़े की दुकान करते थे। उन्होंने कपड़ों को उनके मूल्य के अनुसार वर्गीकृत कर व्यवस्थित रूप से दुकान में रखा हुआ था। एक दिन प्रधान श्री तोता राम जी की अनुपस्थिति में एक सरदार जी ग्राहक के रूप में आये और एक कपड़ा पसन्द कर प्रधान जी के सेवक से उसका मूल्य पूछा? नौकर ने अज्ञानता व असावधानीवश उन्हें उस वस्त्र का कम मूल्य बता दिया। अचानक लाला तोता राम जी वहां आ गये और ग्राहक को कपड़ा देकर उससे मूल्य प्राप्त किया। सरदार जी ने जो मूल्य दिया वह कपड़े के निर्धारित मूल्य से कम था। नौकर से पूछने पर उसने अपनी गलती स्वीकार की। सरदार जी निर्धारित मूल्य देने के लिए राजी थे परन्तु प्रधान लाला तोता राम जी ने कहा कि नहीं हमारे प्रतिनिधि ने जो मूल्य बता दिया हम वही मूल्य आपसे लेंगे, अधिक नहीं। सरदार जी इस घटना से बहुत प्रभवित हुए। वह वहां गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान थे। इन दोनों में परस्पर मित्रता हो गई और जीवन की शेष अवधि तक दोनों घनिष्ठ मित्र रहे।
यद्यपि यह प्रसंग छोटा है किन्तु यह अपनी बात व वचन पर कायम रहने व दूसरों को अपना बना लेने का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है। आज औरों से तो हम क्या अपेक्षा करें, आर्यों में ही ऐसे उदाहरण मिलना दुष्कर है।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, कोई भी प्रेरक प्रसंग छोटा नहीं होता है. हमारे साथ साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। आपने लेख को पसंद किया इससे प्रसन्नता हुई।