कुछ मुक्तक
आज फिर याद है तेरी आई
कैसे कह दूं कि तू नहीं आई
हमसफर हो जा मेरे हमदम
तू न कर यार मेरी रुसवाई
रह रह कर तेरी आती क्यों है
आके सारी रात जगाती क्यों है
सच में न सही ख्वाब में ही आ
अब यार मेरे तू सताती क्यों है
ऐ दोस्त तू ही तो जीने का सहारा है
इस दुनिया में कौन अब हमारा है
तू मिल जाये तो मिले जग की खुशी
तू ही मेरा चांद और सितारा है
— अरुण निषाद
रह रह कर तेरी आती क्यों है
आके सारी रात जगाती क्यों है
सच में न सही ख्वाब में ही आ
अब यार मेरे तू सताती क्यों है खूब बहुत.
Sadar pranam sir ji
साभार धन्यवाद