कुण्डली/छंद

मनहरण घनाक्षरी छंद : बेटी की पीर

शब्द-शब्द दर्द हार, सुनो मात ये गुहार,
गर्भ में पुकारती हैं, नर्म कली बेटियाँ।

रोम-रोम अनुलोम, हो न जाए स्वांस होम,
टूटे न कभी ये स्वप्न, चुलबुली बेटियाँ।

सृष्टि-सृजन आधार, कल की छिपी फुहार,
शूल सी नहीं हैं होती, पीर पली बेटियाँ।

तेरा ही अभिन्न अंग, भरो तो नवीन रंग,
बेटों को है देती जन्म, धीर ढली बेटियाँ।

गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

One thought on “मनहरण घनाक्षरी छंद : बेटी की पीर

  • Basudeo Agarwal

    sundar rachna

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