मनहरण घनाक्षरी छंद : बेटी की पीर
शब्द-शब्द दर्द हार, सुनो मात ये गुहार,
गर्भ में पुकारती हैं, नर्म कली बेटियाँ।
रोम-रोम अनुलोम, हो न जाए स्वांस होम,
टूटे न कभी ये स्वप्न, चुलबुली बेटियाँ।
सृष्टि-सृजन आधार, कल की छिपी फुहार,
शूल सी नहीं हैं होती, पीर पली बेटियाँ।
तेरा ही अभिन्न अंग, भरो तो नवीन रंग,
बेटों को है देती जन्म, धीर ढली बेटियाँ।
— गुंजन अग्रवाल
sundar rachna