गीतिका/ग़ज़ल

“रुबाइयाँ”

हम यूँ न आदर अदाया करते है
बड़ हुनर सम्मान समाया करते है
अजीब ख़ुशी मिलती है सआदर में
पराए भी मिल निभाया करते है।।
रह गुजर शकून दिलाया करते है
मिल बैठकर हँस हँसाया करते है
गम के बखार में कुढ़ते हैं कीड़े
हम दाँत निम रस पिलाया करते हैं।।
घर मिलती सीख निभाया करते है
हरपल माँ बाप बुलाया करते है
खुशियाँ अपार रज चरणों में जिनके
श्रद्धा सुमन शर झुकाया करते हैं।।
अग्रज अनुज को दुलराया करते है
बगियाँ को सहज सजाया करते हैं
इमान दिल चंपा नेक रातरानी
छाँव गुलमुहर इतराया करते हैं।।
कभी तो हम भी चिढ़ाया करते है
नेकी व बदी भी गिनाया करते हैं
तर त्यौहार की सफाई धुलाई
मकड़ी के जाल हटाया करते हैं।।
नजर की चूक विसराया करते हैं
महफ़िल जमें तो जमाया करते हैं
दिल के सामने मुहब्बत की चोरी
कमाया तो पर लुटाया करते हैं।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

6 thoughts on ““रुबाइयाँ”

  • रीना मौर्य "मुस्कान"

    bahut-bahut badhiya

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद सुश्री रानी मौर्य, मुस्कान जी, हार्दिक आभार, स्वागत है पटल पर आप का

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया सुश्री विभा रानी श्रीवास्तव जी, हार्दिक आभार महोदया

  • गुंजन अग्रवाल

    बहुत खूब

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद सुश्री गुंजन अग्रवाल जी, हार्दिक आभार महोदया

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