दो कश्तियों पे होके सवार
कहाँ हो पाया कोई सागर से पार
तुझको ये एहसास गर हो जाये
सही गलत कुछ तो समझ आये
कभी तो कोई लहर आयेगी
नैया और माँझी से टकरायेगी
उफनेगा ज्वारभाटे का तेज़ और
तेरी खोखली जीत बन जायेगी हार…
*
कि पार जाने के लिये सही नाव का चुनाव आवश्यक होता है …!!
…!!
waah bahut -bahut sundar
बहुत बहुत धन्यवाद रीना जी..आपने समय निकाल कर कविता पढी 🙂
प्रिय सखी शिप्रा जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. पार जाने के लिये एक और सही नाव का चुनाव आवश्यक होता है. अति सुंदर व सार्थक कविता के लिए आभार.
लीला दी …आप अपनी स्नेह यूँ ही बरसाइये और साथ ही मार्गदर्शन भी दीजिये अपनी इस अनुजा को 🙂
हमारे पास स्नेह-ही-स्नेह है,
मार्गदर्शन का जिम्मा परमपिता का है,
वही हमारा भी मार्गदर्शक है.