तंग दिल अमीर भाई -लघु कथा
पंडित रामू काका के तीन संतानें थीं । एक पुत्र दो पुत्रियां । छोटे काश्तकार और स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जा चुके थे । पुत्र सिद्धार्थ माँ का बड़ा आज्ञाकारी और पढ़ने में बहुत मेधावी हर परीक्षा में अव्वल आता था । काका बहुत खुश थे कि उनका बेटा बहुत नाम कमाएगा लेकिन शादी होते ही वो बदल गया और अपनी बीबी बच्चों को लेकर शहर में बस गया । कभी भी उसने परिवार की आर्थिक मदद नहीं की बल्कि जब घर आता जरुरत की हर चीज ले जाता । पुत्री श्यामा का विवाह काका ने कैसे तो क़र्ज़ लेकर शहर में खाता पीता घर देख कर बिचवानुं पर विश्वास करके कर दिया । गाँव के सीधे सादे काका यह समझ ही नहीं पाए कि दामाद शराबी -जुआरी है ,वह श्यामा को मारता पीटता । श्यामा आती जाती रही कई वर्ष ऐसे ही बीत गए और वह चार बच्चों की माँ बन गई । जब पुत्री की तकलीफे हद से ज्यादा बढ़ गईं तब काका पुत्री श्यामा को हमेशा के लिए घरले आये । चार बच्चों के साथ पुत्री का लालन -पालन करना आसान नहीं था फिर भी उन्होंने किया । छोटी पुत्री वामा पढ़ने में बहुत तेज थी लेकिन साधन के अभाव में काका चाहते हुए भी उसे दसवीं तक पढ़ाकर उसकी शादी कर दी और बाकी की पढ़ाई उसने प्राइवेट परीक्षा देकर पूरी की । वह अपनी लगन – मेहनत से स्वावलम्बी बन अपने पति के साथ बहुत खुश थी । काका ने बहुत कोशिश की श्यामा के बच्चे जय और विजय पढ़ लिख जाएँ और लायक बन कर अपनी माँ की देखभाल कर सकें लेकिन दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा और बच्चे मुश्किल से दसवीं पास कर पाए ।
काका की चिंता बढ़ रही थी कि उनके बाद श्यामा का क्या होगा । छोटी पुत्री लगातार दबाव डाल रही थी कि उसके नाम कुछ जमीन कर दे ताकि उसके रहने खाने का प्रबंध हो जाए लेकिन बेटा – बहू इस बात से नाराज़ हो गए और घर में कलह युद्ध छिड़ गया और सिद्धार्थ जब जब आता श्यामा को अपमानजनक शब्द बोलता “ इसे अनाथाश्रम भेज दो ,घर से निकाल दो ,कही जाकर मर क्यूँ नहीं जाती ,हमने ठेका नहीं ले रखा है ,”जैसे वाक्यों को बोल बोल कर अपमानित करता । काका -काकी और पुत्री वामा को असहनीय दुःख होता । सिद्धार्थ ने कुछ वर्षों तक वामा से बात करना बंद कर दिया कि यह पिता से क्यों कहती है कि शयामा के जीवन के भरण पोषण के लिए कुछ जमीन उसके नाम कर दें ।
काकी कैंसर से चल बसी लेकिन जाने से पहले उन्होंने काका से वचन लिया कि श्यामा के नाम जमीन कर दे और तब काका ने दस बीघा जमीन श्यामा के नाम कर दी बाकी जमीन बहू के नाम कर दी ।घर में जैसे भूचाल आ गया । सिद्धार्थ विश्व विद्यालय में प्रोफ़ेसर था ,अच्छा रहन सहन और स्टेटस था लेकिन बहुत संकीर्ण सोच वाला और बेहद स्वार्थी था। उसे मैं और मेरे बच्चे इसके सिवा कुछ भाता नहीं था । छोटी बहिन की सुख -समृद्धि उसे फूटी आँख भी नहीं भाती थी फिर भी समाज में अच्छा बनने के लिए दिखावे के लिए कभी कभी बात करता था ।
काका ने श्यामा की दोनों बेटियों की शादी कर दी । कुछ वर्षों के बाद काका भी चल बसे । सिद्धार्थ का व्यवहार श्यामा के प्रति बद से बदतर होता गया फिर भी श्यामा सहती रही । कहाँ जाती कही ठौर ठिकाना नहीं था । पिता के कच्चे टूटे फूटे मकान में रहकर जीवन गुजारने लगी । बच्चे भी माँ का सहारा न बन सके ,माँ को अकेला खंडहर घर में छोड़कर अपने परिवार के साथ बाहर बस गए । जब पैसे चाहिए होते तब माँ के पास आते ।
भाई सिद्धार्थ वर्षों बाद एक बार अपनी पत्नी ,बेटे और पोते के साथ आया । बहिन ने भाई की खूब आवभगत की लेकिन भाई ने एक बार भी उसका दुःख- सुख नहीं पूछा । बात कुछ गरीबी की चली तो सिद्धार्थ ने श्यामा को लक्ष्य कर कहा “ गरीब का कोई मान-अपमान नहीं होता और उन्हें कभी भी शादी ब्याह में नहीं बुलाना चाहिए ,,अपने स्तर वालों को ही बुलाना चाहिए और अगर बिन बुलाए आ जाएँ तो सौ जूते मारकर बाहर निकाल देना चाहिए ।” सबसे बड़े शिक्षा के पद से निवृत्त अमीर बड़े भाई के ऐसे अपमानित शब्द सुनकर गरीब बहिन श्यामा फूट -फूट कर रो पड़ी ।
डॉ रमा द्विवेदी ,हैदराबाद